सूरज

थका हरा सूरज रोज़ ढल जाता है.

अगले दिन हौसले से फिर रौशन सवेरा ले कर आता है.

कभी बादलो में घिर जाता है.

फिर वही उजाला ले कर वापस आता है.

ज़िंदगी भी ऐसी हीं है.

बस वही सबक़ सीख लेना है.

पीड़ा में डूब, ढल कर, दर्द के बादल से निकल कर जीना है.

यही जीवन का मूल मंत्र है.

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