मसाई मारा, केन्या,अफ़्रीका के यात्रा के दौरान देखी एक सच्ची दिल को छूने वाली घटना पर आधारित ।


देखा था एक तकती माँ को तपती धूप में ,
अफ़्रीका के जंगलो में जहाँ मौत और
ज़िन्दगी के बीच कितना फ़ासला है कोई नहीं जानता .
तब नहीं मालूम था जल्द जीवन का कठोरतम सत्य भी देखना है।
वहाँ देखा था बड़ी– बड़ी, मासूम आँखों वाली
मंजुल, मासूम, नाज़ुक सी गजेल हिरणी को
सुनहरी घास में दमकती स्वर्ण सी
मातृत्व प्रेम से अोत–प्रोत
क्या ऐसे हीं सौंदर्य ने मोहा था वनवासी सिया को?
अौर भेज दिया था उन्होंने राम को उसके पीछे?
अौर तभी कुछ पल पहले दुनिया में आया नवजात,
कुछ पल में शिकार हो गया लोमड़ी जोड़े का,
नोचे, मृत छौने को चाटती , डबडबाई आँखें, भय,
मोह, फिर से पाने की चाह में, ज़बरदस्ती खड़ा करने की कोशिश में,
अपने प्राणों की चिंता किए बिना
कभी पास आते लोमड़ियों से बिना ङरे दूर भगाती,
कभी बच्चे के पास आ कर भी ना आती, सहमी पर
निर्भय हो क्रूर, अपने से मजबूत अौर शक्तिशाली
दुश्मन को दूर–दूर तक दौङाती हिरणी.
आँखे आँसू से भर बंद हों गए,
कुछ बुँदें छलक गिर आईं भय से कस कर बंद मुट्ठियों पर
यह ह्रदय–विदारक दृश्य देखना कठिन था,
पर मौत पर कथन था गाइड का – आप भाग्यशाली है
क्योंकि मसाई मारा में ऐसे दृश्य के गवाह कम हीं होते हैं!
शायद धीरे धीरे मौत की सच्चाई समझ आने लगी थी
लाचार माँ को , थोड़ी दूर दूर थी वह अब बच्चे से …….
देखा था एक तकती माँ को
उसकी बड़ी–बड़ी डबडबाई आँखें को !
अौर देखा शिकारियों को भी माँ के जाने का इंतज़ार करते…….
अफ़्रीका, मसाई मारा के जंगलो में जहाँ
देखे कई रंग ज़िन्दगी के…….।
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