जिज्ञासा, कुतूहल,
प्रश्न हीं प्रश्न है अंतर्मन में
यह प्रश्नों का अंतहीन
सिलसिला कब रुकेगा ?
या कभी नहीं रुकेगा ?
उत्तर मिलेगा ?
तब कब मिलेगा ?
या कभी नहीं मिलेगा?

जिज्ञासा, कुतूहल,
प्रश्न हीं प्रश्न है अंतर्मन में
यह प्रश्नों का अंतहीन
सिलसिला कब रुकेगा ?
या कभी नहीं रुकेगा ?
उत्तर मिलेगा ?
तब कब मिलेगा ?
या कभी नहीं मिलेगा?

सही सवाल सही जवाब।👌👌
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सवाल तो है पर जवाब नहीं .
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या कभी नहीं मिलेगा….शायद यही जवाब है।
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हाँ मधुसूदन .
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अंतर्मन में उठने वाले प्रश्नों के उत्तर यदि कहीं बाहर न मिलें तो बेहतर है कि उन्हें अंतर्मन में ही ढूंढा जाए रेखा जी क्योंकि कई बार अंतर्मन में दीप जल जाने से भीतर प्रकाश हो जाता है तथा उस अज्ञान का अंधकार स्वतः ही मिट जाता है जिसके प्रतीक वे प्रश्न होते हैं । और फिर अभी तक अनुत्तरित रहे उन प्रश्नों के उत्तर बिना किसी दूसरे के बताए ही हमें प्राप्त हो जाते हैं ।
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आपकी सुलझी सहज बातें हमेशा सही रहतीं हैं.
कभी कभी जीवन-मृत्यु , उसके बाद का जीवन, विरक्ति, ज़िम्मेदारियाँ और ना जाने कितनी बातें आतीं हैं.
तब कुछ समझ नहीं आने लगता हैं.
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