“The tongue like a sharp knife…
Kills without drawing blood…”
दमकते रौशनी में समय बिताने वालों की जिंदगी का भी अँधियारा या तमस पक्ष हो ता हैतभी तो संजीदा हो वे बेचैनी में चैन ,अंधकार में प्रकाश खोजते हैं,
जिज्ञासा, कुतूहल,
प्रश्न हीं प्रश्न है अंतर्मन में
यह प्रश्नों का अंतहीन
सिलसिला कब रुकेगा ?
या कभी नहीं रुकेगा ?
उत्तर मिलेगा ?
तब कब मिलेगा ?
या कभी नहीं मिलेगा?


जिस पर सुरक्षा का भार है,
वही सही ना हो तो ?
पर ग़नीमत है कि
सहेज कर रखा और
आज की पीढ़ी समझदार है.
सच्चाई स्वीकार कर ली .
देर आय पर दुरुस्त आए .
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