समय

समय की किताब पर हाथ फेरा

काल के पन्ने पलटे,

दिन की नहीं बरसों की यात्राएँ की

भूली बिसरी ज़िंदगी

लौटाने की कोशिश में .

16 thoughts on “समय

    1. बिलकुल सही. कविता का भाव चाँद शब्दों में लिखने के लिए शुक्रिया नीरज .

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  1. मन के दर्पण मे दिखती हैं
    भूली बिसरी स्मृतियां
    जैसे पुरानी किताबों पर पडी
    धूल की परतें
    याद दिलाती है बीती घड़ी
    घड़ी की कांटों मे
    उलझा है समय
    और समय के चक्रव्यूह मे
    उलझा है जीवन।

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  2. आपकी इन्हीं पंक्तियों के संदर्भ में बच्चन जी की अमर पंक्तियां हैं –

    रात आधी हो गई है!

    जागता मैं आँख फाड़े,
    हाय, सुधियों के सहारे,
    जब कि दुनिया स्‍वप्‍न के जादू-भवन में खो गई है!
    रात आधी हो गई है!

    सुन रहा हूँ, शांति इतनी,
    है टपकती बूंद जितनी
    ओस की, जिनसे द्रुमों का गात रात भिगो गई है?
    रात आधी हो गई है!

    दे रही कितना दिलासा,
    आ झरोखे से ज़रा-सा,
    चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गई है!
    रात आधी हो गई है!

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    1. दिल छूने वाली कविता है थे .?आपने बच्चन जी की कविता की चर्चा की . यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है . बहुत आभार .

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