मिर्जा गालिब (27 Dec 1796 – 15 Feb 1869)

मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” (२७ दिसंबर १७९६ – १५ फरवरी १८६९) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे।

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कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती

मौत का एक दिन मु’अय्यन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती

जानता हूँ सवाब-ए-ता’अत-ओ-ज़हद
पर तबीयत इधर नहीं आती

है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती

क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती

दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता
बू-ए-चारागर नहीं आती

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नहीं आती।

meaning-  बर नहीं आती = पूरी नहीं होती), (सूरत = उपाय) (मुअय्यन = तय, निश्चित)

(सवाब = reward of good deeds in next life, ताअत = devotion,ज़हद = religious deeds or duties चारागर – doctor, healer.

जिंदगी के रंग- 13

किसी ने  ग़ालिब से पूछा – …..”कैसे हो?”   ग़ालिब ने हँस कर कहा –

 

जिंदगी में ग़म है……

      ग़म में दर्द  है………….

   दर्द में मज़ा है ………

अौर मज़े में हम हैं।

ख्वाबों ख्यालों ख्वाहिशों भरी जिंदगी -कविता

I have a thousand desires, all desires worth dying for………..

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले…

  MIRZA GHALIB

 

ख्वाबों ख्यालों ख्वाहिशों  से

बहुत आगे आ चुकी है जिंदगी।

गुनगुनाती सुबहें अौर शाम की

बस कुछ खुमारी बची है।

जिंदगी की जिम्मरदारियों ने,

वक्त के साथ क्या-क्या  बदल दिया?

अब तो अपने आप से बातें करने के लिए भी,

वक्त से इजाजत लेनी पड़ती है।

पर अभी भी  नही बदलीं हैं,

तो हसरतें अौर हज़ारों ख्वाहिशें…………..

 

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