
कुछ मोहब्बतें
जलतीं-जलातीं हैं।
कुछ अधुरी रह जाती हैं।
कुछ मोहब्बतें अपने
अंदर लौ जलातीं हैं।
जैसे इश्क़ हो
पतंग़े का चराग़ से,
राधा का कृष्ण से
या मीरा का कान्हा से।

कुछ मोहब्बतें
जलतीं-जलातीं हैं।
कुछ अधुरी रह जाती हैं।
कुछ मोहब्बतें अपने
अंदर लौ जलातीं हैं।
जैसे इश्क़ हो
पतंग़े का चराग़ से,
राधा का कृष्ण से
या मीरा का कान्हा से।

अधूरी मुहब्बतों की
दास्ताँ लिखी जाती है।
राधा और कृष्ण,
मीरा और कान्हा को
सब याद करते हैं।
किसे याद है कृष्ण की
आठ पटरानियों और
16 हजार 108 रानियों की?

ना दूरी ना नज़दीकी
रिश्ते बनाती या बिगड़ती है।
वह तो सरसब्ज़ ….सदाबहार
प्रीत और चाहत होती है।
राधा पास थी,
पर अपनी बनी नहीं।
मीरा सदियों दूर थी,
पर कान्हा उनके अपने थे।
शुभ मित्रता दिवस !!!!
विष्णु के अष्टम अवतार,
देवकी के आठवें पुत्र,
अष्ट पत्नियाँ– रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा,
कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मण को
राधा को, मीरा को, गोपियों को,
कान्हा क्यों सभी को अच्छे लगते हैं ?
मुरली प्यारी है या मोर मुकुट? या स्वंय केशव?
कोई नहीं जान पाया…..
बस इतना हीं काफी है – वे अच्छे लगतें हैं।
बिना स्पर्श क्यारिश्ते बनते नहीं ?क्या हर रिश्ते कानाम ज़रूरी है ?क्या कहते है इसे ?जो मीरा ने किया श्याम से ?
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