कैसे तराशें अपने आप को ?
यह प्रश्न चिन्ह सा डोलता है मन में.
यह देख , चाँद थोङ झुका अौर बोला।
देखो, मैं तो सनातन काल से यही कर रहा हूँ।
हर दिन, अपने आप को तराशता रहता हूँ।
जब-जब अपने में कमी नज़र आती है।
अपने को पूरा करने की कोशिश में लग जाता हूँ।
कैसे तराशें अपने आप को ?
यह प्रश्न चिन्ह सा डोलता है मन में.
यह देख , चाँद थोङ झुका अौर बोला।
देखो, मैं तो सनातन काल से यही कर रहा हूँ।
हर दिन, अपने आप को तराशता रहता हूँ।
जब-जब अपने में कमी नज़र आती है।
अपने को पूरा करने की कोशिश में लग जाता हूँ।
“You have to keep breaking your heart until it opens.”
― Rumi
चुभते, बेलगाम, नुकीले आघातों से टूटना,
दस्तुर-ए- ज़िदंगी है।
पर किसी को तोङना क़सूर है।
दूसरों को तोड़ने की कोशिश
वही करते हैं, जो ख़ुद टूटे रहते हैं.
इसलिये हौसला हारे बिना
लगे रहना, आगाज-ए- जीत है।
पलट कर देखा, लगा काश…..
बीता समय लौट आये।
जिंदगी ने हँस कर कहा –
यह लिखना -मिटाना
फिर कुछ नया लिखना……..
यह तुम्हारी फितरत होगी,
हमारी नही।
हम तुम्हारी तरह लेखक या कवि नहीं हैं।
दूसरा मौका हम नहीं देते!!!!!
We are stars wrapped in skin,
The light you are seeking has always been within.
~ Rumi
जिंदगी की राहें सड़कों की तरह कभी खत्म नहीं होती है,
मंजिल की दूरी से ङरने से अच्छा है,
एक -एक कदम उठा कर चलते जाना।
जब लगे, सारे रास्ते बंद हैं, शुन्य से भी शुरु करने में भी क्या हर्ज़ है?
सफेद पन्ने पर फिर से जो चाहे लिखने का मौका मिला है।
बस अपने अंदर की आग को जलते रहने देना है।
जब किसी बात से हमारे कदम लङखङा जाते हैं, यह कविता उस वक्त के लिये है। पर विशष कर
उन बच्चों को समर्पित है, जिन्हों ने परीक्षा में अपने मन लायक सफलता – उपलब्धि नहीं पाई है।
Image from internet.