कहते हैं त्रुटि कपड़ों में हैं।
पर वे प्राचीन मूर्तियाँ जो मंदिरों में पाषाणों पर
युगों-युगों पहले उकेरी गई सौंदर्यपूर्ण मान।
उन्हें अश्लील या अर्ध नग्न तो नहीं कहते।
आज़ कहते हैं ग़लती लड़कियों की है।
क्या तब लोगों की निगाहें सात्विक थीं
या तब सौंदर्य बोध अलग था।
सुनते है, सब दोष मोबाइल का है।
बौद्ध भिक्षुकों के तप स्थली अजन्ता गुफाओँ में
उकेरे बौद्ध धर्म दृश्य और नारी सौंदर्य शिल्पकारी,
उत्कृष्ट कलात्मकता की है पराकाष्ठा।
हमारी प्राचीन संस्कृति कहती कुछ और है।
और आज कुछ और कहा जाता है।
भूल कहाँ है? गलती किसकी है?
चूक कहाँ हुई? क़सूर किसका?
सज़ा किसे?
गुनाहगार कोई, सज़ा पाए बेगुनाह?


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