जिंदगी के रंग-188

अपने हों, हवा-ए-फिजा, उड़ता धुँआ या धुंध हो।

जिनके रुख का पता हीं ना हो ,

उन्हें परखने की कोशिश बेकार है ।

क्यों नहीं आज़माना  है, 

तब्सिरा….. समिक्षा करनी है अपनी? 

ईमानदारी से झाँकों अपने अंदर,

या मेरे अंदर…… .आईने ने कहा।

सारे जवाब मिल जायेंगें।

जीने की कला   Art of living 

सम्बन्धों को बनाये रखना ,

 ईमानदारी से रिश्ते निभाये रखना ,

जीवन जीने की कला है। 

वरना …..

टूटते रिश्ते , बिखरते लोगों को देखा है ,

आसमान के आँसुओं को ओस  बन कर टपकते देखा है ।