ना तो हम किसी से बंधे हैं ना कोई हमसे।
फिर भी पाने-खोने, जैसी मृगतृष्णा क्यों?
ना किसी के साथ आए ना साथ जाना।
फिर भी अपना-पराया के
सराब / मरीचिका में भटकते हैं क्यों ?
माया-मोह में उलझी यह दुनिया
है कोई जादू, भ्रम या नशा शराब का?
माया मोहिनी, जैसे मीठी खांर
सदगुरु की कृपा भैयी, नाटेर करती भांर।
– कबीर
कबीर कहते है की समस्त माया और भ्रम चीनी के मिठास की तरह आकर्षक होती है।प्रभु की कृपा है की उसने मुझे बरबाद होने से बचा लिया।
Kabir says illusions are attractive like sweet sugar I am blessed by the God, otherwise it would have ruined me.
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