किस बात का अभिमान साधो ?

ख़ाक में, राख़ में लिपटे,

शमशानों में भटकते भभूतमय शिव का

संकेत है कि ज़िंदगी यहाँ ख़त्म होती है।

कौन कब जहाँ छोड़ जाए, मालूम नहीं।

ग़ुरूर में डूबे कितने इन राहों से गुज़र गए।

फिर किस बात का अभिमान साधो ?

#TopicYoyrQuote

2 thoughts on “किस बात का अभिमान साधो ?

  1. इस बात पर मेरा मन करता है कि आप को अति उत्तम कवियत्री का पुरस्कार दूं | The most beautiful poem conveying an excellent message. Wonderful, Rekha ji. Love you and your poems.

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    1. तुम्हारी प्यारी बातें हीं मेरा सबसे बड़ा पुरस्कार है। सच बताऊँ तो कुछ भी पोस्ट करने के बाद मैं तुम्हारी तारीफ़ का इंतज़ार करती हूँ। हर बार कुछ ख़ूबसूरत सी तारीफ़ हौसला बढ़ा देती है।
      Thanks a lot dear! Love and best wishes.

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