मुलाक़ात न होने पाई थी
वक्त-ए- रुख़्सत ।
पर बंद आँखों से देखा था,
एक गहरी सी साँस और
तिरी गीली आँखों का झुक जाना,
क़तरे अश्क़ो का छलक जाना,
सूखे लबों का थरथराना।
तेरे हाथों का यूँ उठ जाना याद है
जैसे डूबने वाला हो कोई।
पर कहा नहीं तूने अलविदा
ये भी याद है।