ख़ाक में, राख़ में लिपटे,
शमशानों में भटकते भभूतमय शिव का
संकेत है कि ज़िंदगी यहाँ ख़त्म होती है।
कौन कब जहाँ छोड़ जाए, मालूम नहीं।
ग़ुरूर में डूबे कितने इन राहों से गुज़र गए।
फिर किस बात का अभिमान साधो ?
#TopicYoyrQuote
ख़ाक में, राख़ में लिपटे,
शमशानों में भटकते भभूतमय शिव का
संकेत है कि ज़िंदगी यहाँ ख़त्म होती है।
कौन कब जहाँ छोड़ जाए, मालूम नहीं।
ग़ुरूर में डूबे कितने इन राहों से गुज़र गए।
फिर किस बात का अभिमान साधो ?
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