तुलसीदास काशी में वेद-वेदांग अध्ययन के लिए हुए. अचानक पत्नी प्रेम वे व्याकुल होने लगे। अतः गुरूजी से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि राजापुर लौट आये। पत्नी रत्नावली चूँकि मायके में ही थी क्योंकि तब तक उनका गौना नहीं हुआ था अत: तुलसीराम ने भयंकर अँधेरी रात में उफनती यमुना नदी तैरकर पार की, साँप को रस्सी समझ पकड़ कर ऊपर चढ़े और सीधे अपनी पत्नी के शयन-कक्ष में जा पहुँचे। रत्नावली इतनी रात गये अपने पति को अकेले आया देख कर आश्चर्यचकित हो गयी। उसने लोक-लाज के भय से जब उन्हें चुपचाप वापस जाने को कहा तो वे उससे उसी समय घर चलने का आग्रह करने लगे। उनकी इस अप्रत्याशित जिद से खीझकर रत्नावली ने स्वरचित एक दोहे कहा –
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
इस आघात से उनके जीवन में बदलाव आया और वे राम प्रेम में डूब गए.
Nice wordings👍
LikeLiked by 3 people
Thank you 😊 Athira.
LikeLiked by 1 person
You’re welcome 🙂 🙂
LikeLiked by 1 person
Please check my new post of Evlin – a real life experience…
LikeLiked by 2 people
Thanks for the invitation.
LikeLiked by 1 person
Most welcome Rekha!
LikeLiked by 1 person
An interesting perspective
LikeLiked by 1 person
Great thought 👌
LikeLiked by 1 person
Thank you 😊 Prakash!!!
LikeLike
Nice quote👍😊
LikeLiked by 2 people
Thank you 😊
LikeLiked by 1 person
Good one
LikeLiked by 1 person
Strong message 🙏🏻
LikeLiked by 1 person
Thank you 😊
LikeLike
(आपको अपने दिल को तब तक तोड़ते रहना है जब तक वह खुल न जाए।)
Maine google translate kiya hai, kya yah sahi hai?
LikeLiked by 1 person
हाँ!
LikeLiked by 1 person
तोड़ते रहने से मतलब? मुझे यह समझ नहीं आया।
LikeLiked by 1 person
हमेशा टूटने का मतलब ख़त्म नहीं होता. कभी कभी टूटने से शुरुआत भी हो सकती है. जैसे पंछियों के अण्डों के टूटने से चूज़े निकलते है.
LikeLiked by 1 person
Accha ye matlab tha, mai insano ki dil ka soch rha tha
LikeLiked by 1 person
Yah insaani par bhi laagu hota hai. Kai baar Dil par lagi chot aankhe khol deti hai.
Jante ho na , Tulsidas mahan sant kaise bane?
LikeLiked by 1 person
Ha ye to hai ma’am 🙂
LikeLiked by 1 person
😊
LikeLiked by 1 person
तुलसीदास काशी में वेद-वेदांग अध्ययन के लिए हुए. अचानक पत्नी प्रेम वे व्याकुल होने लगे। अतः गुरूजी से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि राजापुर लौट आये। पत्नी रत्नावली चूँकि मायके में ही थी क्योंकि तब तक उनका गौना नहीं हुआ था अत: तुलसीराम ने भयंकर अँधेरी रात में उफनती यमुना नदी तैरकर पार की, साँप को रस्सी समझ पकड़ कर ऊपर चढ़े और सीधे अपनी पत्नी के शयन-कक्ष में जा पहुँचे। रत्नावली इतनी रात गये अपने पति को अकेले आया देख कर आश्चर्यचकित हो गयी। उसने लोक-लाज के भय से जब उन्हें चुपचाप वापस जाने को कहा तो वे उससे उसी समय घर चलने का आग्रह करने लगे। उनकी इस अप्रत्याशित जिद से खीझकर रत्नावली ने स्वरचित एक दोहे कहा –
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
इस आघात से उनके जीवन में बदलाव आया और वे राम प्रेम में डूब गए.
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद बताने के लिए!💐 🙏
LikeLiked by 1 person
Welcome Parma. Yah kahani to ham sab jaante hai. 😊
LikeLike