गलबहियाँ

कभी-कभी कोई कहानी,

कोई कविता अपनी सी

लगने लगती है.

खो जातें हैं उसमें .

पढ़ते पढ़ते कब उसके पात्र,

दोस्त….हमदम…..बन

गलबहियाँ डाल।

गले लगा लेते हैं

पता हीं नहीं चलता .

इसी में लेखन की सार्थकता है .

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