ज़िंदगी के रंग – 107

ताउम्र हिसाब करती है ज़िंदगी.

जिसने ज़िंदगी को क़रीब से देखा है

कटु सच्चाई को परखा और महसूस किया है

उन्हें या तो ज़िन्दगी के तकलीफ़

बेहद कड़वा-कठोर बना देती है .

या बेहद नरम मृदु ,

क्योंकि वे दूसरों के कष्ट को समझ

कम करने की कोशिश करते है .

यह ज़िन्दगी भी कुछ अजीब है ना ?

Nelson Mandela’s thought. Happy new year!!

Before Nelson Mandela left prison he said “As I stand before the door to my freedom, I realise that if I do not leave my pain, anger and bitterness behind me, I will still be in prison”.

Self imprisonment is worse than that imposed. How many are in self inflicted pains today for lack of forgiveness. How many of us have imprisoned ourselves inside the walls of anger and bitterness.

Holding grudges does not make you strong, it makes you bitter. Forgiveness does not make you weak, it sets you free.

Consider this while you are preparing to move into 2019.

HAPPY NEW YEAR!!!!!

 

Forwarded as received.

Little things

Never stop

Doing little things

for others .

sometimes those

little things occupy

the biggest part

of their heart.

~~Unknown

Rules of love – Rule 33

While everyone in this world strives to get somewhere and become someone, only to leave it all behind after death, you aim for the supreme stage of nothingness.

Live this life as light and empty as the number zero.

We are no different from a pot.

It is not the decorations outside but the emptiness inside that holds us straight.

Just like that, it is not what we aspire to achieve but the consciousness of nothingness that keeps us going.

Shams Tabriz spiritual instructor of  Rumi ❤️❤️

उसूलों पे जहाँ आँच आये


उसूलों पे जहाँ आँच आये, टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है, कहाँ जाना ज़रूरी है
थके-हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटें
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है
बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शरमाना ज़रूरी है
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है, ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है।

~~ वसीम बरेलवी साहब

सौजन्य – जितेन्द्र माथुर जी

ख़ुदमुख़्तार – आज़ादपसंद ,स्वावलंबी, स्वतंत्र, self-determined

त’अल्लुक़- संबंध, रिश्ता, Relation.

चूहों का स्ट्राइक – व्यंग

पहलें बिहार, अब उत्तर प्रदेश के नाराज़

चूहे स्ट्राइक पर हैं, कहते है –

कुतरना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है

अपने लगातार बढ़ते दाँतों को तराशने के लिए।

पर बोतलें और शराब ? ना बाबा ना ……

हमारे ऊपर भी ढेरों जिन्मेदारियाँ हैं।

गणपति वाहन , करनी माता भक्त , ढेरों वैज्ञानिक शोध …….

अभी तक लगभग तीस नोबेल विजेताओं के काम

व दुनिया की  ख़ूबसूरती  प्रोडक्टस

हमारे बलिदान पर टिके हैं.

महाभारत में पांडवों को बचाने के लिए विदुर

ने हमारे टेक्नोलाजी का उदाहरण दिया था।

सच तो यह है कि पीते-पिलाते ख़ुद हो और नाम कमज़ोर का ?

कभी नशे में देखा है क्या हमें?

तुम्हें तो हमारे बिलों और हमारे नालियों के हाई-वे

के आस पास कई बार गिरे , नशे में चूर देखा है ।

हमारे नाम बदनाम ना करो,  वरना ……

पाईड पाइपर की ज़रूरत बस पड़ जाएगी तुम्हें,

अपने घर की नीवों को हमसे बचाने के लिए।

English news- Rats drank it’: Cops as 1,000 litres of seized liquor disappears from police station

https://m.hindustantimes.com/india-news/rats-drank-it-cops-as-1-000-litres-of-seized-liquor-disappears-from-police-station/story-29vyjzzRCsYj2RjAP0gBdO.html

Inshorts.

Ghalib’s Glory

क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं.
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ

The prison of life and the bondage of grief are one and the same.
Before the onset of death, how can man expect to be free of grief?


क़ैद-ए-हयात – जीवन की क़ैद

बंद-ए-ग़म – ग़मों की क़ैद

अस्ल-असल

Rules of love – Rule 32


Nothing should stand between you and God.

No imams, priests, rabbits or any other custodians of moral or religious leadership.

Not spiritual masters and not even your faith. Believe in your values and your rules, but never lord them over others.

If you keep breaking other people’s hearts, whatever religious duty you perform is no good. Stay away from all sorts of idolatry, for they will blur your vision.

Let God and only God be your guide. Learn the Truth, my friend, but be careful not to make a fetish out of your truths.

Shams Tabriz spiritual instructor of Rumi ❤️❤️

ज़िन्दगी के रंग -107

A 1946 love story: After 72 years of separation, 90-year-old man meets first wife-  An eight-month love story. After Narayanan Nambiar and Sarada were split in 1946, their children from second marriages decided to set up a meeting for the two.

English News – https://www.thenewsminute.com/article/1946-love-story-after-72-years-separation-90-year-old-man-meets-first-wife-94069

मेरी एक पुरानी सच्ची कहानी इसी खबर की तरह अजीब सी विङंबना पर आधारित है। जिसे यहाँ दे रहीं हूँ।

वह हमारे घर के पीछे रहती थी। वहाँ पर कुछ कच्ची झोपङियाँ थीं। वह वहीं रहती थी। कुछ घरों में काम करती थी। दूध भी बेचती थी। लंबी ,पतली, श्यामल रंग, तीखे नयन नक्श अौर थोङी उम्र दराज़। उसका चेहरा सौंदर्यपुर्ण, सलोना अौर नमकीन  था। उसकी बस्ती में जरुर उसे सब रुपवती मानते होंगे।
जब भी मैं उधर से गुजरती । वह मीठी सी मुस्कान बिखेरती मिल जाती। उसकी मुस्कान में कुछ खास बात थी। मोनालिसा की तरह कुछ रहस्यमयी , उदास, दर्द भरी हलकी सी हँसी हमेशा उसके होठों पर खेलती रहती। एक बार उसे खिलखिला कर हँसते देखा तब लगा मोनालिसा की मुस्कान मेरे लेखक मन की कल्पना है।
एक दिन उसकी झोपङी के सामने से गुजर रही थी। वह बाहर हीं खङी थी। मुझे देखते हँस पङी अौर मजाक से बोल पङी – मेरे घर आ रही हो क्या? मैं उसका मन रखने के लिये उसके झोपङी के द्वार पर खङे-खङे उससे बातें करने लगी। उसका घर बेहद साफ-सुथरा, आईने की तरह चमक रहा था। मिट्टी की झोपङी इतनी साफ अौर व्यवस्थित देख मैं हैरान थी। यह कहानी झाखण्ङ की है। यहाँ के आदिवासियों का रहन-सहन वास्तव में बङा साफ-सुथरा होता है। झोपङी के बाहर भी कलात्मक चित्र गोबर अौर मिट्टी से बने होतें हैं।

एक दिन, सुबह के समय वह अचानक अपने पति के साथ मेरे घर पहुँच गई। दोनों के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें थीं। पति के अधपके बाल बिखरे थे। उसके कपङे मैले-कुचैले थे। शायद उम्र में उससे कुछ ज्यादा हीं बङा था। पर वह बिलकुल साफ-सुथरी थी। तेल लगे काले बाल सलिके से बंधे थे। बहुत रोकने पर भी दोनों कुर्सी पर ना बैठ,  सामने ज़मीन पर बैठ गये।

पता चला, उनका बैंक पासबुक उसके पति से कहीं खो गया था। वह बङी परेशान सी मुझ से पूछ बैठी -“ अब क्या होगा? पैसे मिलेंगे या नहीं ?” दोनों भयभीत थे। उन्हें लग रहा था, अब बैंक से पैसे नहीं मिलेगें। वह पति से नाराज़ थी। उसकी अोर इंगित कर बोलने लगी – “देखो ना, बूढे ने ना जाने “बेंक का किताब” कहाँ गिरा दिया है।” जब उसे समझ आया, पैसे अौर पासबुक दोनों बैंक जा कर बात करने से मिल जायेंगें, तब उसके चेहरे पर वही पुरानी , चिरपरिचित मोनालिसा सी मुस्कान खेलने लगी।
एक दिन मैं उसके घर के सामने से गुजर रही थी। पर उसका कहीं पता नहीं था। मेरे मन में ख्याल आया, शायद काम पर गई होगी। तभी वह सामने एक पेंङ के नीचे दिखी। उसने नज़रें ऊपर आसमान की अोर थीं, जैसे ऊपरवाले से बातें कर रही हौ। उसकी हमेशा हँसती आँखोँ में आँसू भरे थे। मैं ने हङबङा कर पूछा – “ क्या हुआ? रो क्यों रही हो?” तब उसने अपने जिंदगी की विचित्र कहानी सुनाई।
***

बेहद कम उम्र में उसका बाल विवाह किसी छोटे अौर पिछङे गाँव में  हुआ था। कम वयस में दो बच्चे भी हो गये। वह पति अौर परिवार के साथ सुखी थी। उसके रुप, गुण अौर व्यवहार की हर जगह चर्चा अौर प्रशंसा होती थी। उसे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी।

एक दिन उसका महुआ अौर ताङी का प्रेमी (शराबी) पति उसे जल्दी-जल्दी तैयार करा कर अपने साथ कचहरी ले गया। वहां एक अधेङ व्यक्ति को दिखा कर कहा – अब तुम इसके साथ रहोगी। मैं ने तुम्हें बेच दिया है। मुझे जमीन खरीदने के लिये पैसे चाहिये थे।“ वह जब रो -रो कर ऐसा ना करने की याचना करने लगी। तब पति ने बताया, यह काम कचहरी में लिखित हुआ है। अब कुछ नहीं हो सकता है।
उसकी कहानी सुन कर , मुझे जैसे बिजली का झटका लगा। मैं अविश्वाश से, चकित नेत्रों से उसे देखते हुए बोलने लगी – “ यह तो नाजायज़ है। तुम गाय-बकरी नहीं हो। तुम उसकी जायदाद भी  नहीं । जो दाव पर लगा दे या तुम्हारा सौदा कर दे। उसने तुम से झूठ कहा है। यह सब आज़ के समय के लिये कलकं है।”
उसने बङी ठंङी आवाज़ में कहा – “ तब मैं कम उम्र की थी। यह सब मालूम नहीं था। जब वह मुझे पैसे के लिये बेच सकता है। तब उसकी बातों का क्या मोल है। अब सब समझती हूँ। पर यह सब तो पुरानी बात हो गई।”

मैं अभी भी सदमें से बाहर नहीं आई थी। गुस्से से मेरा रक्त उबल रहा था। आक्रोश से मैं ने उससे पूछ लिया – “ फिर क्यों रो रही हो ऐसे नीच व्यक्ति के लिये?”

उसने सर्द आवाज़ में जवाब दिया – “ आज सुबह लंबी बीमारी के बाद उसकी यानि मेरे पहले पति की मृत्यु हो गई। उसके परिवार के लोगों ने खबर किया है । पर तुम्हीं बताअो, क्या मैं विधवा हूँ? मेरा बूढा तो अभी जिंदा है। मैं इस बात लिये नहीं रो रहीं हूँ। उसकी मौत की बात से मेरे बूढे ने कहा, अगर मैं चाहूँ, तो विधवा नियम पालन कर सकती हूँ। मैं रो रही हूँ , कि मैं किसके लिये पत्नी धर्म निभाऊँ? मैंने तो दोनों के साथ ईमानदारी से अपना धर्म निभाया है।

उसकी बङी-बङी आँखो में आँसू के साथ प्रश़्न चिंह थे। पर चेहरे पर वही पुरानी मोनालिसा की रहस्यमयी , उदास, दर्द भरी हलकी सी हँसी , जो हमेशा उसके होठों पर रहती थी।

Do what you can !!

Start where you are.

Use what you have.

Do what you can.

—Arthur Ashe