तेल खत्म होते दिये की धीमी लौ की पलकें झपकने लगी,
हवा के झोंके से लौ लहराया
अौर फिर
पूरी ताकत से जलने की कोशिश में……
धधका …..तेज़ जला…. अौर आँखें बंद कर ली।
बस रह गई धुँए की उठती लकीरें अौर पीछे की दीवार पर कालिख के दाग।
तभी पूरब से सूरज की पहली किरण झाँकीं।
शायद दीप के हौसले को सलाम करती सी।