बिखरे शब्द 

इधर उधर बिखरे  शब्दोँ  को बटोरकर

उनमें  दिल के एहसास  और

जीवन के कुछ  मृदु कटु अनुभव डाल

बनती है सुनहरी

काव्यमय  कविता ……

कभी तो यह दिल के बेहद करीब होती है

सुकून भरी …मीठी मीठी निर्झर सी ….

और कभी जब यह  पसंद नहीं आती

मिटे पन्नों में कहीं दफन हो जाती है -ऐसी कविता !

16 thoughts on “बिखरे शब्द 

  1. bahut khub likha hai…..
    सुध कहाँ पसंद नापसंद की
    हम तो कलम चलाना जानते,
    नफरत,छल,दफन वे जाने,
    हम तो प्रेम करना जानते,
    वैसे तो कब्र की चीख भी
    सुन लेते हैं सुननेवाले वरना,
    इंसानो की चीख भी सब
    कहाँ पहचानते,
    इंसानो की चीख भी सब
    कहाँ पहचानते|

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    1. उम्दा !!!!!बेहद खूबसूरत।।।
      मर्म को छूने वाली बात लिखी है –

      सुन लेते हैं सुननेवाले वरना,
      इंसानो की चीख भी सब
      कहाँ पहचानते?

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