Healthy friendships boosts memory

Study : Healthy friendships may boost memory .           शोध -स्वस्थ दोस्ती याददश्त को बढ़ा सकती है

 

Having healthy friendships may not only reduce loneliness, but can boost your memory and improve your psychological well-being as well as make healthier life choice.

Maintaining positive, warm and trusting friendships may not only reduce loneliness, but also sharpen your memory and boost brain function, a study has found.

 

अच्छे दोस्त

स्वस्थ दोस्ती  अकेलेपन को कम करती है अौर  आपकी याददाश्त को बढ़ा सकती है । यह  आपके मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकती है और स्वस्थ जीवन दे  सकती है।

सकारात्मक, अपनापन भरी और भरोसेमंद मैत्री  न केवल अकेलापन को कम कर सकता है, बल्कि आपकी याददाश्त को भी तेज कर सकती है । यह  मस्तिष्क की क्षमता  को बढ़ा सकती है। यह एक अध्ययन में पाया गया है।

 

4 thoughts on “Healthy friendships boosts memory

  1. बात तो ठीक है लेकिन सच्चे और अच्छे दोस्त मिलते कहाँ हैं रेखा जी । दिये जलते हैं, फूल खिलते हैं, बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते हैं । है न ? खुशकिस्मत हैं वो जिन्हें सचमुच में दोस्ती निभाने वाले दोस्त मिल जाएं । दोस्त और वाक़िफ़कार में फ़र्क़ होता है रेखा जी । हम ग़लती से वाक़िफ़कारों को दोस्त समझ बैठते हैं । निर्मला सिंह गौर जी की एक कविता के बोल हैं – ‘दोस्त क्या होते हैं, क्या होती हैं उनकी ख़ूबियां; इस जमाने में बड़ी मुश्किल से मिलते हैं यहाँ; दोस्त वो है अनकहे जो दर्द को पहचान ले, हाल-ए-दिल क्या है ये बस पढ़कर जान ले’ ।

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    1. आपकी इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ। इस शोध को पढ़ कर एक हीं बात समझ आई – दूसरे क्या करते हैं इसे छोङ दिया जाये तो अच्छा है। लेकिन अपनी अोर से दोस्ती निभाना हीं सही है।
      खूबसूरत गीत अौर निर्मला सिंह गौर जी की गहराई भरी कविता के लिये शुक्रिया।

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      1. आभार आपका रेखा जी । निर्मल सिंह गौर जी की कविता की जो अंतिम पंक्ति मैंने उद्धृत की है, उसमें कुछ अधूरापन है । मैं सुधार कर पुनः लिख रहा हूँ – ‘दोस्त वो है अनकहे जो दर्द को पहचान ले, हाल-ए-दिल क्या है ये बस चेहरे से पढ़कर जान ले’ ।

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      2. बहुत शुक्रिया आपका।
        मुझे तो लगता है, आज के समय में सब अपनी परेशानियोँ में ऐसे उलझे हैं कि मित्र के चेहरे अौर दर्द को पढ़ कर भी साथ नहीं दे पाते हैं।
        बङी सुंदर पंक्तियाँ हैं निर्मल जी की –
        ‘दोस्त वो है अनकहे जो दर्द को पहचान ले,
        हाल-ए-दिल क्या है
        ये बस चेहरे से पढ़कर जान ले’ ।

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