तरीके और हथियार ( कविता )

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उसके पति ने कहा ,
सजावट की तरह रहो ,
कौन तुम्हें मदद करेगा ?
यह पुरुषों की दुनियाँ हैं.
सब के सब , कभी न कभी
ऐसे रिश्ते बनाते हैं.
अगर तुमने मेरी जिंदगी मॆं
ज्यादा टाँग अडाई ,
तब सब से कह दूँगा –
                       यह औरत पागल हैं.

उसने नज़रें उठाई और कहा-
सब के सब तुम्हारे जैसे नहीँ हैं.
तुम्हारे ये तरीके और हथियार पुराने हो गये ,
मुझ पर काम नहीँ करते.
हाँ , जो तुम जैसे हैं ,
वहीं तुम्हारा साथ देते हैं.

मैं नारी हूँ, रानी हूँ, शक्ति हूँ।
इसलिये शर्मिंदा होने का समय तुम्हारा हैं.
मेरा नहीँ.

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आज़ के आधुनिक समय में अभी भी  कुछ ऐसे लोग  मिल जाते हैं , जो नारी को समानता  का दर्ज़ा देने में विश्वाश  नही रखते.

 

 

छायाचित्र इंद्रजाल /   internet   से।

19 thoughts on “तरीके और हथियार ( कविता )

  1. वाह, बिल्कुल सटीक सोच, जो नारी को सम्मान न दें, वह मर्द कहाँ। और जो लोग सात फेरे का परस्पर वचन न निभाए, उनका दामपतिय जीवन का मूल्य बेकार।

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    1. तुम मेरी बात से सहमत हो. जान कर अच्छा लगा. वरना नारी और बेटियों को सम्मान देने जैसी बात कुछ लोगों के जेहन में आती ही नहीँ हैं और पत्नी को ही हँसते रोते परिवार सम्भालने का सुझाव देते रहते हैं.

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    1. धन्यवाद. आध्यात्म और धर्म में ये बातें मिलती हैं. हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिये.

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    1. हमारे समाज में आज भी इस विषय पर भेद भाव है. इसलिये आपकी तरीफ बहुत अच्छी लगी. बहुत धन्यवाद यशवंत जी.

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