#toghter बचपन का वह साथ ( blog related )

शाम का सुहाना समय था। मैं सोफ़े पर अधलेटी टीवी देख रही थी। दिन भर की भाग – दौड़ के बाद बड़ा अच्छा लगता है आराम से बैठ कर अपना मन पसंद टीवी कार्यक्रम देखना। अगर ऐसे में हाथों में गरमा – गरम चाय का प्याला हो। तब और भी अच्छा लगता है। ऐसे में लगता है कि कोई परेशान ना करे। ना कोई छेड़े। फोन की घंटी भी उकताहट पैदा कर देती है। वह दिन भी ऐसा ही था। मैं बड़े मनोयोग से टीवी देख रही थी।

तभी फोन की आवाज़ आई। शायद कोई मैसेज था। मन में ख्याल आया – बाद में देखूँगी। पर फिर मैंने सोचा कहीं मेरे ब्लॉग की कोई सूचना या वोट तो नहीं है। ब्लॉग लिखना बहुत अच्छा लगता है। पर उसके ज्यादा खुशी होती है उसके बारे में वोट या कमेंट्स पढ़ कर। मैं अपने इस लोभ को रोक नहीं पाई। फोन हाथों में ले कर देखा। मैसेंजर पर किसी का मैसज था। फेसबुक पर भी आमंत्रण था। नाम तो जाना पहचाना था, पर सरनेम कुछ अलग था।

यही विरोधाभास है हमारे यहाँ। लड़कों के नाम तो ज्यों के त्यों रहते है। पर लड़कियों को अपने परिचय में कुछ नया जोड़ना पड़ता है शादी के बाद। मुझे पूरा नाम पढ़ कर ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा था। मानव स्वभाव भी बड़ा विचित्र होता है। अक्सर हमें आधी अधूरी कहानियां ज्यादा परेशान करती है। हमारी पूरी कहानी जानने की चाह का फायदा टीवी सीरियल वाले भी उठाते हैं। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ। मेरे आधी याद ने मेरा पूरा ध्यान उधर ही खींच लिया। यह किसका मैसेज है? दिमाग में यह बात घूमने लगी।

निर्णय नहीं ले पा रहीं थी। जीत अधूरे टीवी कार्यक्रम की होगी या अधूरी याद की। आखिरकार मैंने फेसबुक देखा। आँखों के आगे लाभग 36 वर्ष पुराने दिन घूमने लगे। यह तो लिली है। हम दोनों ने बचपन का बहुत खूबसूरत समय साथ गुजारा था। हम एक ही कॉलोनी में रहते थे। हमारे घर आमने सामने था। हमारे पारिवारिक संबंध थे। साथ में खेलना कूदना और समय बिताना। हमने ना जाने कितनी होली साथ खेली थीं, और दुर्गा पूजा के कार्यक्रम इकट्ठे मनाये । ढेरो मीठी यादों ने घेर लिया।

मेरे पिता के तबादले के बाद हमलोगों का साथ छूट गया था। हमारी शादियाँ हो गई। हमारे उपनाम बदल गए। परिवार और बच्चों में उलझ कर हमारी जिंदगी तेज़ी से आगे बढ़ गई। किसी जरिये से उसे मेरे बारे में मालूम हुआ था। तभी लिली का फोन आ गया। उसकी आवाज़ में उत्साह और खुशी झलक रही थी। हम बड़े देर तक भूली- बिसरी यादों को बताते, दोहराते रहे।

बचपन का साथ और यादें इतनी मधुर होती है।यह तभी मैंने महसूस किया। सचमुच बड़ा मार्मिक क्षण था वह। आज इतने समय के बाद हमारी बातें हो रहीं थी। जब हमारे बच्चे बड़े हो चुके है। दुनिया बहुत बदल चुकी है। पर बचपन का वह साथ आज भी मन में उल्लास भर देता है।

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लिखती तो मैं पहले भी थी (कविता )

लिखती तो मैं पहले भी थी। कभी कुछ छप जाता था। तब खुश हो लेती

थी। कभी लिखे पन्ने रखे-रखे पीले पड़ समय की भीड़ में कहीं खो

जाते थे। पर धन्यवाद ब्लॉग की दुनिया। मन की बातें लिखने के लिए

इतना बड़ा आसमान और इतनी बड़ी धरती दे दी है । ढेरो जाने-

अनजाने पाठक और आलोचक। सबको धन्यवाद।

अब मन की हर बात, हर विचार को जब चाहो लिख डालो। मन में भरे

ख़ज़ाने और उमड़ते-घुमड़ते विचारों को पन्ने पर उतारने की पूरी छूट

है। लिखती तो मैं पहले भी थी, पर अब लिखने में मज़ा आने लगा है।

मेरा ब्लॉग -“नरेटिवे ट्रांसपोट ” या “परिवहन कल्पना मॉडल” ( मेरे ब्लॉग के नाम के विषय में )

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मेरा ब्लॉग –“नरेटिवे ट्रांसपोटेशन ” या “परिवहन कल्पना मॉडल” के नाम से है।नाम कुछ अलग सा है। इसलिए मैं इस बारे में कुछ बातें करना चाहूंगी।


कभी-कभी हम किसी रचना को पढ़ कर उसमें डूब जाते हैं। उसमें  खो जाते हैं। उस में कुछ अपना सा लगने लगता है।

ऐसी कहानी या गाथा जो आप को अपने साथ बहा ले जाये।  इसे “कथा परिवहन अनुभव” या “नरेटिवे ट्रांसपोटेशन कहते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक  मनः  स्थिति होती है।

मैं चाहती हूँ कि मेरे रचनाओं को पढ़ने वाले पाठक भी ऐसा महसूस करें। इसमें हीं मेरे लेखनी की सार्थकता है। शब्दों का  ऐसा मायाजाल बुनना बहुत कठिन काम है। फिर भी मैं प्रयास करती रहती हूँ। अगर मेरा यह प्रयास थोड़ा भी पसंद आए। तब बताएं जरूर। यह मेरा हौसला  बढ़ाएगा।

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जस्टिन हॉल – ब्लॉग के दुनिया के जनक

शिकागो के इलिनोइस में 16 दिसम्बर 1974 में जन्मे जस्टिन हॉल आज एक अमेरिकी पत्रकार है। इन्हें सबसे अग्रणी और संस्थापक ब्लॉगर / इंटरनेट आधारित डायरी लेखक कहा जाता है।

1994 में वार्थमोर कॉलेज के छात्र, जस्टिन ने अपनी वेब आधारित डायरी लिंक शुरू किया। फिर पहली व्यावसायिक वेब पत्रिका वायर्ड शुरू किया। बाद में हॉल ने वीडियो गेम, मोबाइल प्रौद्योगिकी और इंटरनेट संस्कृति को कवर करने के लिए एक स्वतंत्र पत्रकार बन गए। इनका ब्लॉग लिखने का कार्य जल्दी ही लोगों को पसंद आने लगा। बाद मे इन्हों ने हावर्ड र्हेंगोल्ड के साथ साझेदारी में एक लंबी अवधि तक काम किया। अभी वे सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में रहतें है।
दिसंबर, 2004 में, न्यूयॉर्क टाइम्स पत्रिका ने उन्हे “व्यक्तिगत ब्लॉगिंग के संस्थापक पिता” का खिताब दिया।

आज ब्लॉग की दुनिया विस्तृत हो गई है। दुनिया के हर कोने में और हर भाषा में ब्लॉग लिखे जाते हैं। इसे शुरू करने का श्रेय जस्टिन हॉल को जाता है।

जस्टिन हॉल – ब्लॉग के दुनिया के जनक

शिकागो के इलिनोइस में 16 दिसम्बर 1974 में जन्मे जस्टिन हॉल आज एक अमेरिकी पत्रकार है। इन्हें सबसे अग्रणी और संस्थापक ब्लॉगर / इंटरनेट आधारित डायरी लेखक कहा जाता है।

1994 में वार्थमोर कॉलेज के छात्र, जस्टिन ने अपनी वेब आधारित डायरी लिंक शुरू किया। फिर पहली व्यावसायिक वेब पत्रिका वायर्ड शुरू किया। बाद में हॉल ने वीडियो गेम, मोबाइल प्रौद्योगिकी और इंटरनेट संस्कृति को कवर करने के लिए एक स्वतंत्र पत्रकार बन गए। इनका ब्लॉग लिखने का कार्य जल्दी ही लोगों को पसंद आने लगा। बाद मे इन्हों ने हावर्ड र्हेंगोल्ड के साथ साझेदारी में एक लंबी अवधि तक काम किया। अभी वे सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में रहतें है।

दिसंबर, 2004 में, न्यूयॉर्क टाइम्स पत्रिका ने उन्हे “व्यक्तिगत ब्लॉगिंग के संस्थापक पिता” का खिताब दिया।

आज ब्लॉग की दुनिया विस्तृत हो गई है। दुनिया के हर कोने में और हर भाषा में ब्लॉग लिखे जाते हैं। इसे शुरू करने का श्रेय जस्टिन हॉल को जाता है।

शिवलिंग और नर्मदा ( कविता )

                   -Shivlingam-yonibase-2b

एक पत्थर ने पूछा शिवलिंग से।

                    तुम चिकने हो, सलोने हो इसलिए

                                  पूजे जाते हो?

                हमें तो ना कोई पूछता है। ना ही पूजता है।

                शिवलिंग ने कहा- मैं भी तुम जैसा ही था।

                     नोकदार रुखड़ा, पत्थर का टुकड़ा।

                        पर मैंने अपने को छोड़ दिया

                      नदी के प्रवाह में, नियंता के सहारे।

                   दूसरों को चोट देने के बदले चोटें खाईं।

                नर्मदा ने मुझे घिस – माँज कर ऐसा बनाया।

                  क्या तुम अपने को ऐसे को छोड़ सकोगे?

           तब तुम भी शिव बन जाओगे, शिवलिंग कहलाओगे।

(ऐसी मान्यता है कि नर्मदा नदी का हर पाषाण शिवलिंग होता है या उनसे स्वाभाविक और उत्तम शिवलिंग बनते हैं। नर्मदा या रेवा नदी हमारे देश की 7 पवित्र नदियों में से एक है। नर्मदा नदी छत्तीसगढ़ में अमरकंटक मैं विंध्याचल गाड़ी श्रृंखला से निकलती है और आगे जाकर अरब सागर में विलीन हो जाती है। अमरकंटक में माता नर्मदा का मंदिर है । यह ऐसी एकमात्र नदी है जिस की परिक्रमा की जाती है यह उलटी दिशा में यानी पूरब से पश्चिम की ओर बहती है । इसे गंगा नदी से भी ज्यादा पवित्र माना जाता है । मान्यता है कि गंगा हर साल स्वयं गंगा दशहरा के दिन नर्मदा नदी के पास प्ले के लिए पहुंचती है ।यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इस प्राचीन नदी की चर्चा रामायण, महाभारत , पुराणों और कालिदास के साहित्य में भी मिलता है।

हमारा जीवन भी ऐसा हीं है। जीवन के आघात, परेशनियाँ, दुःख-सुख हमें तराशतें हैं, हमें चमक  प्रदान करते हैं ।

Life is a journey of self discovery. Describe your journey till now or a part of your journey which brought to closer to a truth about life or closer to your soul and self-discovery. #SelfDiscovery

 

images from internet.

#FarMoreSingaporeमेरी ख्वाहिश – एक उत्कृष्ट देश का भ्रमण ( blog related )

मेरी बहुत लंबे अरसे से सिंगापुर जाने की चाहत है। इसकी खुबसूरती और प्राकृतिक सौंदर्य हमेशा मुझे अपनी ओर खींचती है। जीवन के भाग-दौड़ में अवसर ही नहीं मिला इस सुंदर देश को देखने का। कामना है, जल्दी मुझे यहाँ जाने का सुअवसर मिले। यहाँ के भोजन चखने का मौका मिले। यह अपनी व्यवस्था, सौंदर्य और स्वादिष्ट भोजन के लिए जाना जाता है।

सिंगापुर दुनिया का एक छोटा और युवा दक्षिण एशियाई देश है। युवा होने पर भी एक सफल, तरक्कीशील और खूबसूरत देश है। इसका नाम हिन्दी के शब्द शेर / सिंह से बना है। जबकि सच्चाई यह है कि यहाँ कभी शेर नहीं रहते थे। पौराणिक कथा के अनुसार, 14 वीं सदी में सुमात्रा राजकुमार ने एक राजसी सिंह को देख इसका नामकरण सिंगापुर किया।

यह देश अपनी साफ-सफाई और नियम पालन के लिए भी जाना जाता है। इसकी खुबसूरती अद्वितीय है। रात में यह शहर रोशनी में नहाया हुआ और भी खूबसूरत दिखता है।
सिंगापुर में सिंगापुर के स्थायी निवासियों के अलावा चीनी, मलय और भारतीय भी काफी संख्या में है। इस देश ने अपनी तरक्की के लिए समुद्री बन्दरगाह, शुल्क मुक्त पुनर्निर्यात (टैक्स फ्री), निर्यात, औद्योगीकरण, एडुकेशन हब आदि का विकास किया है। इसकी दूरदर्शी नीतियों के कारण यह विकास के पाएदान पर तेज़ी से तरक्की कर रहा है।

सिंगापुर ने पिछले कुछ वर्षों में 650 से अधिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कई हजार वित्तीय संस्थानों और व्यापारिक फर्मों के लिए मेजबान की भूमिका निभाई। इस तरह के मेजबानी के लिए आवश्यक है सभी के स्वाद को समझना , और उसके अनुसार भोजन उपलब्ध कराना।

अर्थव्यवस्था प्रोत्साहन के लिए यहाँ एक और बात पर विशेष बल दिया गया है। वह है पर्यटन और उससे संबधित लुभावने, स्वादिष्ट भोजन । शायद यहाँ के लोग समझ चुके हैं –
             ” किसी के दिल को जीतने की राह पेट से हो कर जाती है”।

यहाँ के सिंगापुरी व्यंजनों के आलावा चीनी, मलय , कॉन्टिनेन्टल और भारतीय सभी प्रकार के भोजन मिलते हैं। यह देश सागर के किनारे बसा है इसलिए यहाँ समुद्री भोजन (सी फूड) भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। पर सिंगापुर में शाकाहारी रेस्तरां: ग्रीन भी जाया जा सकता हैं। यहाँ की एक और विशेषता है, यहाँ उच्च श्रेणी के अनेक रेस्तरा । कुछ रेस्तरा सिंगापुर नदी के किनारे रोमांटिक माहौल में खाने-पीने की व्यवस्था रखते है। पर यहाँ कम खर्च वाले भोजन के स्थान भी उपलब्ध है। यह मेरे जैसे भोजन के शौकीन पर्यटक के लिए अच्छी सूचना है।

सिंगापुर विविधता से भर एक संपन्न देश है। यहाँ की संस्कृति, भाषा , कला और स्थापत्य कला लाजवाब है । सिंगापुर के अनेकों हिस्सों को खूबसूरती से डिजाइन और विकसित किया गया था । सिंगापुर लगातार नए और आकर्षक यात्रा के अनुभवों को पेश करने के लिए अपने को विकसित कर रहा है। ताकि यहाँ अधिक से अधिक संख्या में पर्यटक आए और उनका मूल मंत्र है –

     “अपने घर से दूर घर जैसा आराम और स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध करवाना”

http://discover.stayfareast.com/

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#LookUpStories ख़ुशी की वह घड़ी ( blog related )

दोपहर लगभग 12 बजे का समय था। सोमवार का दिन था। अचानक मेरे पति ने मुझे फोन किया। वे बड़े घबराए हुए थे। उनकी आवाज़ में परेशानी झलक रही थी। आवाज़ में नाराजगी भी थी। उन्होने बताया कि बड़ी देर से वे हमारी बड़ी बेटी को फोन लगा रहें है। पर उसका फोन लग नहीं रहा है।
यह मेरे पति की हर दिन की आदत थी। वे दिन में फुर्सत के क्षणों में एक बार बेटी से बात जरूर करते थे। उस समय बड़ी बेटी पुणे में पढ़ाई कर रही थी। बच्चे जब घर से दूर होते हैं। तब उनका ध्यान रखना जरूरी होता है। उस दिन उन्होने बड़े झल्लये स्वर में कहा- “तुम्हारी बेटी का फोन क्यों नहीं लग रहा है?
मेरे पति की एक बड़ी अजीब आदत है। बच्चे जब अच्छा करते हैं, तब वे बड़े प्यार से उन्हें “मेरी बेटियाँ” कह कर बुलाते है। पर जब बेटियों से नाराज़ होते है तब अक्सर कहतें है- ‘तुम्हारी बेटियाँ’। उस दिन भी वह बार-बार नाराजगी से कह रहे थे – आजकल तुम्हारी बेटी बड़ी लापरवाह होती जा रही है। आज सुबह से उसने फोन नहीं किया है।
मैंने उन्हे समझाने की कोशिश की। हो सकता है, वह क्लास में हो। या किसी ऐसे जगह हो। जहाँ फोन ना लग रहा हो। पर थोड़ी देर बाद उन्होने बताया कि अभी भी फोन नहीं लग रहा हो। उनका सारा गुस्सा मुझ पर उतरने लगा।
ऐसा तो वह कभी नहीं करती है। मैंने भी उसे फोन करने की कोशिश की। पर फोन नहीं लगा। थोड़ी देर में मुझे भी बेचैनी होने लगी। मैं घबरा कर बार-बार फोन करने लगी। पर कोई फायदा नहीं हुआ। उसके कमरे में रहनेवाली उसकी सहेली को फोन करने का प्रयास भी बेकार गया। हॉस्टल में फोन करने पर मालूम हुआ कि वह सुबह-सुबह कहीं बाहर निकाल गई थी। शाम ढल रही थी।
हम लोगों की घबराहट बढ़ गई। आज-कल वह थोड़ी परेशान भी थी। क्योंकि नौकरी के लिए विभिन्न कंपनियाँ आने लगी थी। कैंपस-सेलेक्सन के समय की वजह से थोड़ी घबराई हुई थी। अँधेरा हो चला था। समझ नहीं आ रहा था, से किस से पूछे? कैसे पता करें?
मुझे बताए बिना वह कहीं नहीं जाती थी। बाज़ार जाना हो या सिनेमा, मुझे फोन से जरूर बता देती थी। बार-बार मन में उल्टे-सीधे ख्याल आने लगे। ड़र से मन कांपने लगा। कहीं कुछ उल्टा-सीधा तो नहीं हो गया। लग रहा था, क्यों उसे पढ़ने के लिए इतना दूर भेज दिया?
सारा दिन ऐसे ही बीत गया था। फोन की घंटी फिर बजी और मुझे लगा पति का फोन होगा। लेकिन इस बार बेटी का फोन था। उसकी आवाज़ सुन कर शांति हुई। मैं उसे डाँटने ही वाली थी कि उसकी उत्साह भरी आवाज़ आई- “ मम्मी, मुझे नौकरी मिल गई”। दरअसल उसे देर रात पता चला कि अगले दिन एक अच्छी कंपनी का टेस्ट और इंटरव्यू है। अगले दिन सुबह एक के बाद दूसरे टेस्ट होते रहे और उसे फोन स्विच आफ रखना पड़ा। जिन लोगों का चयन एक टेस्ट में होता उन्हे अगले टेस्ट और फिर इंटरव्यू के लिए भेजा जाता रहा। लगातार टेस्ट और इंटरव्यू के बीच उसे बात करने का मौका नहीं मिला। उसके कमरे में रहनेवाली उसकी सहेली भी साथ थी। इसलिए उसका फोन भी नहीं लग रहा था।
खुशखबरी सुन कर पूरे दिन का तनाव दूर हो गया। बेटी को उज्ज्वल भविष्य के राह पर अग्रसर होते देख मन ख़ुशी से नाच उठा। तभी मेरे पति ने कहा-“ देखा तुमने, मेरी बेटी कितनी लायक है”।

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रेत के कण ( कविता )

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                क्या रेत के कणों को देख कर क्या

                 यह समझ आता है कि कभी ये

              किसी पर्वत की चोटी पर तने अकडे

                 महा भीमकाय चट्टान होंगे
या कभी

           किसी विशाल चट्टान को देख कर मन

              में यह ख्याल  आता है कि समय की

              मार इसे चूर-चूर कर रेत बना देगी?

                                 नहीं न?

              इतना अहंकार भी किस काम का?

             तने रहो, खड़े रहो पर विनम्रता से।

                   क्योंकि यही जीवन चक्र है।

              जो कभी शीर्ष पर ले जाता है और

             अगले पल धूल-धूसरित कर देता है।

पेड़ और पर्वत के अस्तित्व की कहानी ( पर्यावरण धारित प्ररेरक कविता )

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पहाड़ पर विशाल बरगद का पेड़ हवा में झूम रहा था। वृक्ष लाल पके फलों से लदा था। तभी एक पका फल घबरा कर पेड़ को पुकार उठा। जरा धीरे हिलो। वरना मैं गिर पड़ूँगा। वृक्ष मुस्कुरा कर रह गया।
तभी झुंड के झुंड, हरे पंखों वाले तोते उसी डाल पर आ कर बैठ गए। डाली बड़ी ज़ोरों से लचक गई। फल फिर घबरा कर चिल्ला उठा ‘मुझे बचाओ, मैं नीचे गिर पड़ूँगा’। तभी एक तोते ने डरे-सहमे फल पर चोंच मारा। जिस बात का ड़र था, वही हुआ। बेचारा फल डाल से टूट कर नीचे गिरने लगा। पेड़ को उसने फिर आवाज़ दिया –“ मुझे बचाओ”। पेड़ ने स्वभाविकता से जवाब दिया। “यही जिंदगी है, अब अपने बल पर जीना सीखो”।
फल एक धूप से तपते चट्टान पर गिर कर बोला- “मैं अभी बहुत छोटा हूँ और यह चट्टान बहुत गरम है यहाँ तो मैं सुख कर खत्म हो जाऊंगा। ”। पेड़ ने जवाब दिया- “दरार के बीच की चुटकी भर मिट्टी से दोस्ती करके तो देखो”। वह लुढ़क कर वृहत चट्टान के बीच के दरार में जा छुपा
मौसम बीता, समय बीता। फल के अंदर के बीज़ धीरे-धीरे अंकुरा गए। एक नन्हा पौधा चट्टान पर जड़े पसारते बड़ा हो गया। उसकी लंबी जड़ें चट्ट्नो से लटक गई। जड़ें आगे बढ़ कर मजबूती से मिट्टी में समा गई। अब नन्हा पौधा पूरे शान से वृक्ष बन कर खड़ा था।
एक दिन पुराने बरगद ने आवाज़ दिया- “याद है वह दिन। जब तुम कदम-कदम पर मदद के लिए मुझे आवाज़ देते थे? देखो आज तुम अपने बल पर कितने बड़े और शक्तिशाली हो गए हो। इसलिए डरने के बदले अपने-आप पर विश्वास करना जरूरी है।
नए पेड़ ने हामी भरी और कहा- “हाँ तुम्हारी बात तो सही है। पर क्या तुमने कभी यह सोंचा की मेरे यहाँ उगने से बेचारे चट्टान को इतने बड़े दरार का सामना करना पड़ा”। तभी नीचे से चट्टान की आवाज़ आई – “ नहीं दोस्त, हम सभी का अस्तित्व तो एक दूसरे के बंधा है। हमारे बीच का यह दरार तो पुराना है। तुमने और तुम्हारी जड़ों ने तो हमें बांध कर रखा है। तुमने हमें तपती धूप और बरसते बौछारों से बचाया है। यह पूरा पर्वत ही तुम वृक्षो की वजह से कायम है।
नए पेड़ को पुराने पेड़ की बातों महत्व अब समझ आया। हम भी छोटी-छोटी बातों से घबरा कर औरों से मदद की उम्मीद लगाने लगते हैं। हमें अपने पर विश्वाश करने की आदत बनानी चाहिए।