Bhagwan is located on the Pune-Solapur Highway(Maharastra) around 105 km from Pune on the backwaters of Ujani dam. Its famous for migratory birds such as Ducks, Herons, Egrets, Raptors and Waders along with flocks of hundreds of flamingos
Searching for Breakfast – Black Headed Ibis,
Asian Open Billed Stork and Black-winged Stilt in noon.
An evening in Bhigwan with seagulls……. lovely seabirds
beautiful long tailed, Green Bee Eater
Grey Heron ready to take a flight……..
I wish I could fly like a bird एक आजाद परिंदे की तरह……..
जब सूर्य या अर्क एक विशेष समय पर, एक ख़ास कोण से उदित होते हैं। तब कोणार्क मंदिर मेँ एक दिव्य दृश्य दिखता है। लगता है जैसे सूर्य देव मंदिर के अंदर जगमगा रहें है। शायद इसलिए यह मंदिर कोणार्क कहलाया । यहाँ सूर्य को बिरंचि-नारायण भी कहा जाता है। इसका काफी काम काले ग्रेनाईट पत्थरों से हुआ है। इसलिए इसे काला पैगोड़ा भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यता रही है कि सूर्य की किरणों में अनेक रोग प्रतिरोधक क्षमतायें होती हैं विशेष कर त्वचा रोग के उपचार के लिए प्राचीन काल से सूर्य उपासना प्रचलित था। आज भी छठ पूजा और अन्य सूर्य उपासनाएँ प्रचलित है।
आज, आधुनिक विज्ञान ने भी सूर्य के किरणों के महत्व को स्वीकार किया है। किवदंती है कि कृष्ण- पुत्र साम्ब कोढ़ग्रस्त हो गए। तब सांब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी और सागर के संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की। सूर्य देव ने प्रसन्न हो कर सांब के रोगों का नाश किया।
तब साम्ब चंद्रभागा नदी में स्नान करने गए । वहाँ उन्हें सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। मान्यता है कि इस मूर्ति के रचनाकर देव शिल्पी विश्वकर्मा स्वयं थे। उन्होने सूर्यदेव के शरीर के तेज़ से इस मूर्ति का निर्माण किया था। साम्ब ने “कोणार्क सूर्य मंदिर’ बनवा कर इस मूर्ति की वहाँ स्थापना किया।
यह मंदिर एक रथ रूप में बना है। जिसे सात घोड़े खींच रहें हैं।यह अद्वितीय सुंदरता और शोभामय शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण उत्कृष्ट मंदिर है। यह मनमोहक स्थापत्यकला का उदाहरण है। पत्थर पर जीवंत भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, मानवों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्र उकेरे हुए हैं।यह मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है, जिन्हे कामसूत्र से लिया गया है।।ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य सात घोड़ों के रथ पर सवार रहतें हैं। इस मंदिर में इसी कल्पना को मूर्त रूप में उतारा गया है।
इस मंदिर के निर्माण कला को कलिंग शैली कहा गया है। यह पूरा मंदिर अर्क या सूर्य के रथ के रूप में बना है। जिसे सात घोड़े खींच रहें हैं। इस मंदिर में बड़े दिलचस्प तरीके से पहर और महीनों का चित्रण किया गया है। रथ के बारह पहिये/ चक्के या चक्र लाजवाब नक्कासी से पूर्ण हैं। ये बारह चक्र वर्ष के बारह महीनों के प्रतीक हैं। इन चक्कों में आठ अर हैं , जो दिन के आठ प्रहर के सूचक हैं। आधुनिक घड़ी के उपयोग में आने से पहले तक दिन के समय की पहचान पहर/प्रहर के आधार पर होती थी। आज भी हम दिन के दूसरे प्रहर को आम बोलचाल में दोपहर कहते हैं। इस रथ के पहिए कोणार्क की पहचान बन गए हैं ।
कोणार्क मंदिर युनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व धरोहर है। यह भारत के उड़ीसा राज्य में, पूरी में स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर 1236 से 1264 के दौरान निर्मित हुआ है। गंग वंश के राजा नृसिंह देव ने इसका निर्माण करवाया था। इसके निर्माण में काले ग्रेनाईट पत्थरों का बहुलता से उपयोग हुआ है। साथ ही लाल बलुआ पत्थरों का भी इस्तेमाल हुआ है। मान्यता हैं कि इसमे दधिनौती या गुम्बज पर एक विशाल चुम्बक लगा था. जिसकी सहायता से इस के अंदर सूर्य की हीराजटित मूर्ति हवा में लटकी रहती थी. विदेशी लुटेरों ने चुम्बक निकाल लिया, जिस से मंदिर ध्वस्त होने लगा. एक मान्यता यह भी हैं कि इस चुम्बक से समुद्र से गुजरने बाले जहाजों के दिशा यंत्र काम करना बंद कर देते थे.
आज मंदिर का बहुत भाग ध्वस्त हो चुका है। पर इस खंडित और ध्वस्त मंदिर के सौंदर्य से अभिभूत हो नोबल पुरस्कार प्राप्त कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कभी कहा था-
“कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है।”
हमारी बहुत अरसे से सुंदरबन / वन जाने की कामना थी। हमने पश्चिम-बंगाल, कोलकाता, पर्यटन विभाग द्वारा चलाये जा रहे सुंदरबन सफारी कार्यक्रम का टिक़ट ले लिया। इस कार्यक्रम में रहने, खाने और सुंदरबान के विभिन्न पर्यटन स्थल दिखाने की व्यवस्था शामिल है। इसमें एक गाईड भी साथ में होता है।जो यहाँ की जानकारी देता रहता है।
इस सफ़ारी के टिकट अलग अलग कार्यक्रमों में उपलब्ध है। जिसके टिकटों का मूल्य 3400 से 7000 रुपये तक ( प्रति व्यक्ति) है। एक रात – दो दिन तथा दो रात तीन दिन के कार्यक्रम होते हैं।यह कार्यक्रम ठंढ के मौसम में ज्यादा लोकप्रिय है।
बीस फरवरी (20-02-2015) का दिन मेरे लिए खास था।इस दिन मेरी बेटी चाँदनी का जन्मदिन भी था। उस दिन ही सुंदरबन जाने का कार्यक्रम हमने बनाया । मैं और मेरे मेरे पति अधर सुबह आठ बजे टुरिज़्म सेंटर, बी बी डी बाग, कोलकाता पहुँचे। वहां से 3-4 घंटे की एसी बस की यात्रा कर सोनाखली पहुँचे। इस यात्रा में हमें नाश्ता और पानी का बोतल दिया गया। सोनाखली पहुँच कर, बस से उतार कर दस मिनट पैदल चल कर हम नदी के किनारे पहुँचे। जहाँ से नौका द्वारा हमें एम वी (मरीन वेसल) चित्ररेखा ले जाया गया। यह काफी बड़ा जलयान है। इसमें 46 लोगों के रहने और खाने-पीने का पूरा इंतज़ाम है। हमारे ट्रिप में 22 लोग थे। यहाँ से हमारी सुंदरबन जल यात्रा आरंभ हुई।
सुंदरबन नाम के बारे में अनेक मत है। एक विचार के मुताबिक इसकी खूबसूरती के कारण इसका नाम सुंदरबन पड़ा। इस नाम का एक अन्य कारण है, यहाँ बड़ी संख्या में मिलनेवाले सुंदरी पेड़ । कुछ लोगों का मानना है, यह समुद्रवन का अपभ्रंश है। एक मान्यता यह भी है की यह नाम यहाँ के आदिम जन जातियों के नाम पर आधारित है।
जहाज़ तीन तालों वाला था। निचले तल पर रसोई थी। वहाँ कुछ लोगों के रहने की व्यवस्था भी थी। दूसरे तल पर भी रहने का इंतज़ाम था। ट्रेन के बर्थ जैसे बिस्तर थे। जो आरामदायक थे। सबसे ऊपर डेक पर बैठने और भोजन-चाय आदि की व्यवस्था थी। वहाँ से चरो ओर का बड़ा सुंदर नज़ारा दिखता था। जैसे हम जहाज़ पर पहुँचे। हमें चाय पिलाया गया। दोपहर में बड़ा स्वादिष्ट भोजन दिया गया। संध्या चाय के साथ पकौड़ी का इंतज़ाम था। रात में भी सादा-हल्का पर स्वादिष्ट भोजन था।
सुंदरवन बंगाल का सौंदर्य से पूर्ण प्राकृतिक क्षेत्र है। यह दुनिया में ज्वार-भाटा से बना सबसे बड़ा सदाबहार जंगल है। यह भारत के पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में है। इसका बहुत बड़ा भाग बंगला देश में पड़ता है। यह अभयारण्य बंगाल के 24 परगना जिले में है।
सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिणी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। यह एक राष्ट्रीय उद्यान, बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्फ़ीयर रिज़र्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र मैन्ग्रोव के घने जंगलों से घिरा हुआ है और रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। यह बहुत बड़े क्षेत्र में फैला है।
सुंदरवन यूनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व विरासत है । साथ ही प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र है। सुंदरवन तीन संरक्षित भागों में बंटा है – दक्षिण,पूर्व और पश्चिम। सुंदरवन में राष्ट्रीय उद्यान, बायोस्फीयर रिजर्व तथा बाघ संरक्षित क्षेत्र है। यह घने सदाबहार जंगलों से आच्छादित है साथ हीं बंगाल के बाघों की सबसे बड़ी आबादी वाला स्थान भी है। सुंदरबन के जंगल गंगा, पद्मा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों का संगम स्थल है। यह बंगाल की खाड़ी पर विशाल डेल्टा है। यह सदियों से विकसित हो रहा प्रकृति क्षेत्र है। जिसकी स्वाभाविक खूबसूरती लाजवाब है।
यह विशेष कर रॉयल बंगाल टाइगर के लिए जाना जाता है। 2011 बाघ की जनगणना के अनुसार, सुंदरबन में 270 बाघ थे। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या १०३ है। यहाँ पक्षियों की कई प्रजातियों सहित कई जीवों का घर है। हिरण, मगरमच्छ, सांप, छोटी मछली, केकड़ों, चिंराट और अन्य क्रसटेशियन की कई प्रजातिया यहाँ मिलती हैं। मकाक, जंगली सुअर, मोंगूस लोमड़ियों, जंगली बिल्ली, पंगोलिने, हिरण आदि भी सुंदरवन में पाए जाते हैं।
ओलिव रिडले कछुए, समुद्री और पानीवाले सांप, हरे कछुए, मगरमच्छ, गिरगिट, कोबरा, छिपकली, वाइपर, मॉनिटर छिपकली, हाक बिल, कछुए, अजगर, हरे सांप, भारतीय फ्लैप खोलीदार कछुए, पीला मॉनिटर, वाटर मॉनिटर और भारतीय अजगर भी सुंदरवन में रहतें हैं।
लगभग दो घंटे के जल यात्रा के बाद मिट्टी के एक ऊँचे टीले पर हमें एक विशालकाय मगरमच्छ आराम करता दिखा। कहीं दूर कुछ जल पक्षी- सीगल नज़र आए। वहाँ से आगे हमें सुधन्यखली वाच-टावर पर छोटी नाव से ले जाया गया। ये टावर काफी सुराक्षित बने होते हैं।
सुंदरबान की वनदेवी प्रतिमा
प्रत्येक टावर में देवी का एक छोटा मंदिर बना है। दरअसल सुंदरवन के निवासी इस जंगल की देवी की पूजा करने के बाद हीं जंगल में प्रवेश करते हैं। अन्यथा वनदेवी नाराज़ हो जातीं हैं। उनकी ऐसी मान्यता है।
यहाँ ऊँचाई से, दूर-दूर तक जंगल को देखा जा सकता है। यहाँ चरो ओर पाया जाने वाला पानी नमकीन होता है। ज्वार की वजह से समुद्र का पानी नदियों मे आ जाता है। प्रत्येक वाच-टावर के पास जंगली जानवरों के लिए मीठे पानी का ताल बना हुआ है। अतः यहाँ पर अक्सर जानवर पानी पीने आते हैं। इस लिए वाच टावर के पास जानवर नज़र आते रहते है।
इस टावर पर नदी किनारे की दलदली गीली मिट्टी पर ढ़ेरो लाल केकड़े और मड़स्कीपर मछलियाँ दिखी। मड़स्कीपर मछलियाँ गीली मिट्टी पर चल सकती हैं। ये अक्सर पेड़ों पर भी चढ़ जाती हैं। बिजली रे, कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प, कंटिया, नदी मछली, सितारा मछली, केकड़ा, बजनेवाला केकड़ा, झींगा, चिंराट, गंगा डॉल्फिन, भी यहाँ आम हैं। यहाँ मछली मड़स्कीपर और छोटे-छोटे लाल केकड़े भी झुंड के झुंड नज़र आते हैं।
सुंदरवन एक नम उष्णकटिबंधीय वन है। सुंदरवन के घने सदाबहार पेड़-पौधे खारे और मीठे पानी दोनों में लहलहाते हैं। यहाँ जंगलों में सुंदरी, गेवा, गोरान और केवड़ा के पेड़, जंगली घास बहुतायात मिलते है। डेल्टा की उपजाऊ मिट्टी खेती में काम आती है।
वाच टावर के पास बने मीठे पानी का ताल और हिरण
वाच-टावर से जंगल में कुछ हिरण, बारहसिंगा और पक्षी नज़र आए। यहाँ नीचे से ऊपर निकलते जड़ों को पास से देखने का मौका मिला। यहाँ के मैन्ग्रोव की यह विशेषता है। ज्वार-भाटे की वजह से पेड़ अक्सर पानी में डूबते-निकलते रहते हैं। अतः यहाँ के वृक्षों की जडें ऑक्सीजन पाने के लिए कीचड़ से ऊपर की ओर बढ़ने लगती हैं। जगह-जगह पर मिट्टी से ऊपर की ओर निकली काली नुकीली जड़ें दिखती हैं।
2-3 घंटे बाद हम यहाँ से आगे एक ओर वॉच टावर- सजनेखली पर पहुँचे। जहाँ जंगली सूअरों का झुंड दिखा। साथ ही गोह, बंदर, हिरण और कुछ पक्षी दिखे।
रात हो चली थी। डेक पर बैठ कर गाना और कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम में शाम अच्छी कटी। बंगाल के संस्कृतिक जीवन पर सुंदरबान का गहरा प्रभाव है। सुंदरवन वन तथा उसके के देवी-देवताओं का प्रभाव यहाँ के अनेक साहित्य, लोक गीतों और नृत्यों में स्पष्ट दिखता है।
रात में जहाज़ एक जगह पर रोक दिया गया। दुनिया से दूर अंधेरे में, जहाँ चारो ओर पानी ही पानी था। एक अजीब सा एहसास था, वहाँ पर रात गुजरना। अगले दिन सुबह-सुबह ही एक अन्य वाच टावर- दोबांकी जाना था। अतः मैं 5 बजे सुबह उठ कर नहा कर तैयार हो गई। वहाँ की सारी व्यवस्था अच्छी थी। पर बाथ रूम छोटे थे और अपेक्षित सफाई नहीं थी।
सुबह की चाय पीने तक हम वाच-टावर पहुँच गए थे। यह टावर विशेष रूप से बाघों का क्षेत्र था। हिरण, बंदर जैसे जानवर तो दिखे। पर बाघ नहीं नज़र आया। आज के समय में बाघ एक दुर्लभ प्राणी है और यहाँ पर भी कभी-कभी हीं दिखता है। बाघ के हमलों सुंदरवन के गाँव में अक्सर सुनने में आता है। लगभग 50 लोग हर साल बाघों के हमले से मारे जाते हैं।
यहाँ पर सुंदरबान संबन्धित एक दर्शनीय म्यूजियम है और रहने के लिए कमरे भी है। इन कमरों की बुकिंग पहले से करना पड़ता है। यहाँ हमने सुंदरी के पेड़ और यहाँ पाये जाने वाले अन्य वृक्षों को निकट से देखा।
दोबांकी वाच टावर का गेस्ट हाऊस
वहाँ से लौटते-लौटते दोपहर हो रही थी। हमें गरमा गरम भोजन कराया गया। अब हमें वापस सोनाखलीले जाया गया। वहाँ से हमें बस द्वारा वापस कोलकाता पहुंचाया गया। रास्ते में हल्का नाश्ता उपलब्ध करवाया गया।
दो दिन और एक रात जलयान पर जंगलों और नदियों के बीच गुज़ारना मेरे लिए एक नया अनुभव है। यहाँ शहर का शोर-शराबा
नहीं होता है, बल्कि प्रकृति की सौंदर्य का अनुभव होता है। नदियों के जल की कलकल , पक्षियों के कलरव और जंगल की सरसराहट इतने स्वाभाविक रूप से मैंने अपने जीवन में कभी अनुभव नही किया था।
एक अद्भुत, खूबसूरत यात्रा समाप्त हुई। यह एक यादगार और खुशनुमा यात्रा थी।
शिलांग के पास, चेरापुंजी विश्व की सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह है। इस स्थान का वास्तविक नाम सोहरा है। सोहरा बड़ी साफ-सुथरी जगह है। यहाँ के इको पार्क से पहाड़, और घाटियाँ का नज़ारा खूबसूरत लगता है।
यहाँ की एक और लाजवाब चीज़ है- पेडों की सजीव जड़ों से बना झूलता पुल। यहाँ की ख़ासी जन जातियों के लोग अपने अद्भुत योग्यता का इस्तेमाल करते हुए इस तरह के पुल बना लेते हैं। जब किसी नदी के ऊपर यह पुल बनाना होता है, तब ये सुपारी के पेड़ के लंबे-लंबे तनों को बीच से चीर कर नदी के ऊपर इस पार से उस पार तक रख देते है। यहाँ के रबर के पेड़ों की नई पतली जड़ों को उस दिशा में बढ़ने देते है। यहाँ का मौसम और हमेशा होने वाली बारिश इन जड़ों को सुपारी के तनों पर बढ्ने में मदद करती है। बढ़ते-बढ़ते दूसरे किनारे पर जा कर ये जड़ें मिट्टी में जड़ें जमा लेतीं हैं। धीरे-धीरे ये जड़ें मजबूत हो जाती है। इस तरह ये जड़ें मजबूत पुलों का रूप का ले लेती है।
इन पर से आसानी से नदी पार किया जा सकता है। ये पुल बहुत मजबूत होतें हैं। इस तरह के पुल मानव मस्तिष्क की अद्भुत देन है। पूरे विश्व में ये पुल अनोखे हैं। ऐसे पुल और कहीं नहीं पाए जाते हैं।
कड़ाके की ठंड थी। इस ठंड में सुबह-सुबह तैयार होना एक बड़ा काम था। पर समय पर हवाई-अड्डा पहुँचना था। जल्दी-जल्दी तैयार हो कर सुबह 8 बजे हमलोग घर से निकले। हमें लखनऊ से पुणे जाना था। गनीमत थी कि हम समय पर पहुँच गए। घड़ी देख कर चाँदनी, अधर और मैं खुश हुए, चलो देर नहीं हुई। आधे घंटे के बाद फोन पर खबर मिली कि कोहरे के कारण हवाई जहाज 30 मिनट देर से जाएगा। लखनऊ में कोहरा कुछ कम है। पर दिल्ली में घना कोहरा है। पर यह देर होने का सिलसिल लगभग दो घंटे चला। हम दो बजे दिल्ली पहुँचे। वहाँ से पुणे के जहाज का समय दोपहर 2:30 में था। इसलिए हमलोग बेफिक्र थे क्योंकि दोपहर में दिल्ली का मौसम बिलकुल साफ था और पुणे में इतनी ठंड नहीं होती है कि जहाज़ को उतरने में कोहरे की समस्या का सामना करना पड़े। पर किसी कारणवश इस हवाई जहाज के समय में भी देर होने लगा। बार-बार नज़र शीशे के बाहर के मौसम पर जा रही थी। घड़ी की सुइयाँ जैसे-जैसे आगे जा रही थी, कोहरे का असर बढ़ता जा रहा था। अगर कोहरा ज़्यादा हो जाएगा तब ना जाने हवाई जहाज का क्या होगा? ढ़ेरो जहाज इस वजह से स्थगित हो रहे थे। सूर्य पश्चिम की ओर तेज़ तेज़ी से बढ़ रहा था। लगभग 4:30 बजे शाम का समय हो चुका था। मन ही मन मैं मना रही थी कि जहाज जल्दी यहाँ से उड़ान भर ले। सूरज लाल गोले जैसा दिख रहा था। चारो ओर लाली छा गई थी। क्रिसमस की पूर्वसंध्या बड़ी खूबसूरत थी। धीरे-धीरे पश्चिम में डूबता सूरज बड़ा सुंदर लग रहा था। मैं उसकी सुंदरता को निहार रही थी। पाँच बजे शाम में सूर्य अस्त हो गया। हवाई-अड्डे के शीशे से बाहर धुंध नज़र आ रहा था। कोहरा घना हो रहा था। लगा अब हमारी उड़ान के रद्द होने की सूचना ना आ जाए। पर तभी हमे हवाई जहाज के अंदर जाने की सूचना दी गई। थोड़ी राहत तो हुई। पर अंदर बैठने के बाद भी नज़र खिड़की से बाहर घने हो रहे कोहरे पर थी। समझ नहीं आ रहा था कि इस हल्के धुंध भरे कोहरे में जहाज़ अगर उड़ान भर भी ले तो आगे कैसे जाएगा, क्योंकि अब तो कोहरा बढ़ता ही जाएगा। मैं इसी चिंता में थी और जहाज़ ने उड़ान भरी। मैंने आँखें बंद कर माथा सीट पर टिका लिया। विमान बहुत ऊंचाई पर आ गया था। थोड़ी देर बाद मेरी नज़रें विमान की खिड़की के बाहर गई। जहाज़ के पंख पर तेज़ रोशनी चमक रही थी। बाहर तेज़ धूप थी और सूर्य जगमगा रहा था। मैं हैरान थी। नीचे झाँका तो पाया कोहरे की मोटी चादर नीचे रह गई थी। हमारा जहाज कोहरे के मोटी चादर से ऊपर था। ऊंचाई पर कोहरा नहीं था। वहाँ सूरज चमचमा रहा था। संध्या 5:30 में सूर्य फिर से अस्त होता हुआ नज़र आया। यहाँ से सूर्ययास्त और भी लाजवाब लग रहा था। नीचे अंधकार जैसा था। दूर छितिज पर धरती और आकाश मिलते हुए दिख रहे थे। पूरा आसमान डूबते सूरज के लाल और नारंगी रंग में रंगा था। नज़रों के सामने एक और खूबसूरत शाम थी। एक दिन में दो बार सूर्यास्त देख कर रोमांच हो आया। एक सूर्यास्त धरती पर और दूसरा आकाश की ऊंचाइयों पर। क्रिसमस की यह पूर्वसंध्या मेरे लिए यादगार बन गई।
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