नाराज़ हूँ तुमसे ! ( शुभ जन्माष्टमी -30.08.2021)

“The only way you can conquer me is through Love and there I am gladly conquered” says Krishna in The Bhagavad Gita. The only way to win people is by spreading love and getting rid of hatred, anger, and vengeance.

Bhagavad Gita

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 नाराज़ हूँ तुमसे !
पर आसरा भी तुमसे चाहिए!
वृंदावन और जमुना चाहिए।
माखन चाहिए और चाहिए,
 धनवा से ली तुम्हारी, 
बांसुरी की मधुर तान 
 होली में मिले हम तुम पहली बार…..
….गोकुल और बरसाना का वह फाग चाहिए।
फूलों से सजे  तुम अौर मैं  (राधा ) 
वह शरद  पूर्णिमा  की 
रास  चाहिये।
तुला दान के एक तुला पर बैठे  तुम,
दूसरे पलड़े में हलके पङते हीरे जवाहरात के ढेर 
से व्यथित मैया यशोदा।
 ईश्वर को तौलने की कोशिश में लगे थे सब।
यह  देख  तुम्हारे चेहरे पर  छा गई  शरारती मुस्कान ।
वह नज़ारा चाहिये।
मैंने ..(राधा)  हलके पङे तुला पर अपनी बेणी से निकाल एक  फूल रखा
अौर वह झुक धरा से जा लगा
और तुम्हारा पलड़ा ऊपर आ गया।
 स्नेह पुष्प  से,
तुम्हे पाया जा सकता है।
यह बताता वह पल चाहिये।
मुझे छोड़ गये
नाराज़ हूँ तुमसे,
पर तुम्हारा हीं साथ चाहिए।
नाराज़ हूँ तुम से,
पर प्रेम भी तुम्हारा हीं चाहिए।
 
 

 

 
 
 

 

 

 

जिन्दगी के रंग – 223

आपने अपने आप को आईने में देखा ज़िंदगी भर।

एक दिन ज़िंदगी के आईने में प्यार से मुस्कुरा कर निहारो अपने आप को।

अपने को दूसरों की नज़रों से नहीं, अपने मन की नज़रों से देखा। कहो, प्यार है आपको अपने आप से!

सिर्फ़ दूसरों को नहीं अपने आप को खुश करो।

रौशन हो जाएगी ज़िंदगी।

जी भर जी लो इन पलों को।

फिर नज़रें उठा कर देखो। जिसकी थी तलाश तुम्हें ज़िंदगी भर,

वह मंज़िल-ए-ज़िंदगी सामने है। जहाँ लिखा है सुकून-ए-ज़िंदगी – 0 किलोमीटर!

क्या सचमुच बच्चे हमारे भविष्य हैं?

कुछ कहते हैं, दुनिया को सुंदर बनाए रखने के लिए,

पॉल्युशन वालों उद्योगों को अंतरिक्ष

यानि स्पेस में ले जाना चाहिए।

पर दुनिया में बिखरी ऐसी गंदगियों को

हटाने के लिए क्या करना चाहिए?

जब  अपनी दुनिया को साफ़ कर नहीं पा रहें हैं ,

तब अंतरिक्ष की ओर कदम क्यों बढ़ाना?

 

Goa-based chef arrested for sexually abusing 25-30 children, selling videos He allegedly traded and shared photographs and films using dark web

 

Radical space: Jeff Bezos wants to shift factories to another planet

बातें पकड़ना !!

कुछ समझदारों को कहते देखा है- बात ना पकड़ो !!!!!

पर खुद ऐसे लोगो को हमेशा

बातें पकड़तें देखा,

बातें बनाते भी देखा।

इससे इनके रिश्ते भले छूट जाएँ

या अपने टूट जायें।

ऐसे में यह मुहावरा याद आता है – “पर उपदेश, कुशल बहुतेरे।”

गंगा- कब हमारी नींद खुलेगी?

अभी तक इस पर समस्यापर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? जो अब सारी दुनिया में दिखाई जा रही है। यह अफ़सोस की बात है।

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Please watch this video – Covid threat to India’s holiest river Close

 

मैं क्यों आई धरा पर? #गंगाजयंती/गंगासप्तमी 18 मई

हिमालय से लेकर सुन्दरवन तक की यात्रा करती,

पुण्य, सरल, सलिला, मोक्षदायिनी गंगा,

 हमेशा की तरह पहाड़ों से नीचे पहुँची मैदानों का स्पर्श कर हरिद्वार !

कुम्भ की डुबकी में उसे मिला छुअन कोरोना का।

आगे मिले अनगिनत कोरोना शव।

वह तो हमेशा की तरह बहती रही

कोरोना वायरस

जल पहुँचाती घाट घाट!

जो दिया उसे, वही रही है बाँट!

किनारे बसे हर घर, औद्योगिक नगर, हर खेत और पशु को।

शुद्ध, प्राणवायु से भरी गंगा भी हार गई है मानवों से।

सैंकड़ों शवों को साथ ले कर जाती गंगा।

हम भूल रहें हैं, वह अपने पास कुछ भी  रखती नहीं।

अनवरत बहती है और पहुँचाती रही है जल।

अब वही पहुँचाएगी जो इंसानों ने उसे दिया।

कहते हैं गंगा मां  के पूजन  से  भाग्य खुल जाते हैं।

पर उसके भाग्य का क्या?

  ख़्याल उसे आता होगा मगर।

स्वर्ग छोड़ मैं क्यों आई धरा पर ?

 

( एक महीना  पहले यह  कविता मैंनें लिखी थी। इस खबर पर

आप के विचार सादर आमंत्रित हैं। गंगा अौर यह देश आप सबों का भी है। )

अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा?- मीडिया ट्रायल (सुशांत सिंह राजपूत की पुण्यतिथि पर) – व्यंग

सुना है राम और रावण की राशि एक हीं थी,

पर कर्म अलग।

ऐसा हीं हाल है मीडिया का,

कुछ हैं पर्दाफ़ाश और कुछ सनसनीबाज़।

जनता है हैरान,

कैसे जाने कौन ईमानदार कौन चालबाज़ ?

किसकी खबरें सच मानें ?

किसकी बातें  बेमानी ?

कुछ मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक  जज बन

मिनटों में हत्या-आत्महत्या सुलझाते हैं।

शांत रहने,

सुशांत ना बनने की चेतावनी दे जाते हैं।

कम सुनाते है अपराध,

ड्रग्स, मर्डर, चाइल्ड ट्रैफ़िकिंग या फ़्लेश ट्रेडिंग की खबरें।

सर्वाधिक अख़बारों अौर खबरों वाले हमारे देश का यह हाल क्यों?

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ – मीडिया

टिका है कलम या कि तलवार पर?

शक्ति, धन या राजनेताअों पर?

चैनलों की टीआरपी या  रेटिंग पर?

गर  कलम खो देती है अपनी ताकत,

जागरुकता अौर सच्चाई ।

तब जाने अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा?

यहाँ तो कई शाख़ पर उल्लू बैठे हैं।

लफ़्ज़

लफ़्ज़ों के वजूद को समझो।

दिल में उतरने के लिए और

दिल से उतारने के लिए

कुछ बोले और अबोले लफ़्ज़

हीं काफ़ी हो

 

ज़िंदगी के रंग- 219

ज़िंदगी के समंदर में उठते तूफ़ानों के मंजर ने कहा ।

ना भागो, ना डरो हम से।

हम जल्द हीं गुजर जाएग़ें।

साथ लें जाएँगे कई मुखौटे।

तब तुम याद करोगी,

 हमने अपने झोकों से कितने नक़ाब हटाए।

कितने नक़ली अपनों औ असली अपनों से तुम्हें भेंट कराए।

 शांति अच्छी है ज़िंदगी की……

लेकिन वह नहीं दिखती जो

हम कुछ हीं पलों में दिखा अौर सीखा जातें है।

तुम्हें मज़बूत बना जातें हैं।

तुम्हारे जीवन से बहुत कुछ बुहाड़ कर साफ़ कर जातें हैं।

कुछ पलों की हमारी जिंदगानी, जीवन भर का सीख दे जाती हैं।

ना डरों हमसे, ना डरो तूफ़ानों से।