ज़िंदगी के रंग- 219

ज़िंदगी के समंदर में उठते तूफ़ानों के मंजर ने कहा ।

ना भागो, ना डरो हम से।

हम जल्द हीं गुजर जाएग़ें।

साथ लें जाएँगे कई मुखौटे।

तब तुम याद करोगी,

 हमने अपने झोकों से कितने नक़ाब हटाए।

कितने नक़ली अपनों औ असली अपनों से तुम्हें भेंट कराए।

 शांति अच्छी है ज़िंदगी की……

लेकिन वह नहीं दिखती जो

हम कुछ हीं पलों में दिखा अौर सीखा जातें है।

तुम्हें मज़बूत बना जातें हैं।

तुम्हारे जीवन से बहुत कुछ बुहाड़ कर साफ़ कर जातें हैं।

कुछ पलों की हमारी जिंदगानी, जीवन भर का सीख दे जाती हैं।

ना डरों हमसे, ना डरो तूफ़ानों से।

कहानी

कुछ समंदर का भंवर देखना था…

Reblogged, Posted by Neeraj Kumar at 9:44 AM Monday, January 28, 2019

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कुछ समंदर का भंवर देखना था,
कुछ मुक़द्दर का असर देखना था I

कुछ तूफान का क़हर देखना था,
कुछ अपमान का ज़हर देखना था I

कुछ प्रस्तर में अंकुर देखना था,
कुछ जलधर का शरर देखना था I

कुछ सपनों में अग्यार देखना था,
कुछ अपनो में अहंकार देखना था I
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शरर : चिंगारी
अग्यार : अजनबी
जलधर : बादलप्रस्तर : पत्थर

 

 

ज़िंदगी के रंग -114

दर्द ने बताया

समंदर बाहर हो या

दिल अौ आँखों के अंदर .

दोंनो खारे होते हैं.

सुनहरे रेत में, सोने में ढलते सपने

News – Saudi Arabia’s proposed $500 billion mega-city

 

जहाँ चारो अोर रेत का  समंदर है,

वे भी बिना ङरे सबसे आगे जाने ,

नये हौसले दिखाने का साहस कर रहें हैं,

फिर हम तो सामर्थवान हैं।

युवा शक्ति अौर योग गुरु हैं।

बस सुनहरे सपने देखने अौर

उसे पूरा करने के हौसले की  हीं तो जरुरत है।

 

ख्वाब अौर यादें

हर शाम  अौ रात ख्वाबों अौर यादों के
समंदर में गुजरती है
लेकिन
पानी में हाथ ङालते  चाँद,
हिल कर खो जाता है…..

रेत अौर समंदर

समंदर हँसा रेत पर – देखो हमारी गहराई अौ लहराती लहरें,

तुम ना एक बुँद जल थाम सकते हो, ना किसी काम के हो।

रेत बोला —

यह तो तुम्हारा खारापन बोल रहा है,

वरना तुम्हारे सामने – बाहर  अौर अंदर भी हम हीं  हम हैं

— बस रेत हीं रेत !!!