किसका दर्द बड़ा ?

हवा में लहराती,

दुनिया रौशन करने की ख़ुशी से नाचती सुनहरी,

लाल नारंगी लौ क्या जाने,

बाती के जलने का दर्द।

जलती बाती क्या जाने गर्म-तपते तेल की जलन?

ना लौ, ना बाती, ना तेल जाने

दीये के एक रात की कहानी।

जल-तप दूसरों को रौशन करती,

अपने तले हीं अंधकार में डूबा छोड़।

पता नहीं किसका दर्द बड़ा ?

पर सब जल-तप करते रहते हैं रौशन राहें।

बाती और चराग

बाती की लौ भभक

कर लहराई।

बेचैन चराग ने पूछा –

क्या फिर हवायें सता रहीं हैं?

लौ बोली जलते चराग से –

हर बार हवाओं

पर ना शक करो।

मैं तप कर रौशनी

बाँटते-बाँटते ख़ाक

हो गईं हूँ।

अब तो सो जाने दे मुझे।

A Fire Burns Without Touching Trees Or Grass

कुदरत  से देख बेरुख़ी  इंसानों  की ,
बदले मिजाज धधकते लौ की।
आदत अौर फितरत बदल ली है
 दरिया -ए-आग ने शराफत से ।

Spain – According to local news outlet Cope, it was captured at a park in Calahorra, and the white ‘film’ is actually seeds from the poplar tree covering the whole ground.  In the video, the fire burns away the poplar fluff to reveal green grass underneath. Remarkably enough, it doesn’t set any of the trees or the grass aflame. Even a bench in the park remains untouched by the fire.

हौसला

तेल खत्म होते दिये की धीमी लौ की पलकें झपकने लगी,

हवा के झोंके से लौ लहराया

अौर फिर

पूरी ताकत से जलने की कोशिश में……

 धधका …..तेज़ जला…. अौर आँखें बंद कर ली।

बस रह गई धुँए की उठती लकीरें अौर पीछे की दीवार पर कालिख के दाग।

तभी पूरब से सूरज की पहली किरण झाँकीं।

शायद दीप के हौसले को सलाम करती सी।

लौ अौर पतंगा

जबान चुप थी पर आँखोँ हीं आँखों में बातें हुईं –

तङपते पतंगे ने कहा – मैंने जला दिया अपने-आप को,

जान दे दी

तेरी खातिर।

अश्क  बहाती मोमबत्ती ने

कहा मैं ने भी तो तुम्हें

अपने दिल 

अपनी लौ  को चुमने की इजाजत दी।