हँसी !! 

हर हँसी के पीछे छुपी एक ना एक कहानी होती है।

कुछ बेमानी,

कुछ जानी या

अनजानी  होती है।

कुछ मोनालिसा सी रहस्यमय पहेली होती है।

कुछ ख़ुशियों भरी और

कुछ के पीछे छुपी आँसुओं की कहानी होती है.

चाहे कहो इसे मनोविज्ञान या विज्ञान में जेलोटोलॉजी

पर यह तय है कि हर हँसी पैग़ाम होती है ख़ुशियों की

अौर गम भुला,

सीखा देती है, जिंदगी में मुस्कुराने की।

 

 

 

आज की द्रौपदी (कहानी )

baby
वह हमारे घर के पीछे रहती थी। वहाँ पर कुछ कच्ची झोपङियाँ थीं। वह वहीं रहती थी। कुछ घरों में काम करती थी। दूध भी बेचती थी। लंबी ,पतली, श्यामल रंग, तीखे नयन नक्श अौर थोङी उम्र दराज़। उसका सौंदर्यपुर्ण, सलोना अौर नमकीन चेहरा था। उसकी बस्ती में जरुर उसे सब रुपवती मानते होंगे।

जब भी मैं उधर से गुजरती । वह मीठी सी मुसकान बिखेरती मिल जाती। उसकी मुसकान में कुछ खास बात थी। मोनालिसा की तरह कुछ रहस्यमयी , उदास, दर्द भरी हलकी सी हँसी हमेशा उसके होठों पर रहती। एक बार उसे खिलखिला कर हँसते देखा तब लगा मोनालिसा की मुसकान मेरे लेखक मन की कल्पना है।

एक दिन उसकी झोपङी के सामने से गुजर रही थी। वह बाहर हीं खङी थी। मुझे देखते हँस पङी अौर मजाक से बोल पङी – मेरे घर आ रही हो क्या? मैं उसका मन रखने के लिये उसके झोपङी के द्वार पर खङे-खङे उससे बातें करने लगी। उसका घर बेहद साफ-सुथरा, आईने की तरह चमक रहा था। मिट्टी की झोपङी इतनी साफ अौर व्यवस्थित देख मैं हैरान थी।

एक दिन, सुबह के समय वह अचानक अपने पति के साथ हमारे घर पहुँच गई। दोनों के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें थीं। पति के अधपके बाल बिखरे थे। उसके कपङे मैले-कुचैले थे। शायद उम्र में उससे कुछ ज्यादा हीं बङा था। पर वह बिलकुल साफ-सुथरी थी। तेल लगे काले बाल सलिके से बंधे थे। बहुत रोकने पर भी दोनों सामने ज़मीन पर बैठ गये।

पता चला, उनका बैंक पासबुक पति से कहीं खो गया था। वह बङी परेशान सी मुझ से पूछ बैठी -“ अब क्या होगा? पैसे मिलेंगे या नहीं ?” दोनों भयभीत थे। उन्हें लग रहा था, अब बैंक से पैसे नहीं मिलेगें। वह पति से नाराज़ थी। उसकी अोर इंगित कर बोलने लगी – “देखो ना, बूढे ने ना जाने “बेंक का किताब” कहाँ गिरा दिया है।” जब उसे समझ आया । पैसे अौर पासबुक दोनों बैंक जा कर बात करने से मिल जायेंगें, तब उसके चेहरे पर वही पुरानी , चिरपरिचित मोनालिसा सी मुसकान खेलने लगी।

उस दिन मैं उसके घर के सामने से गुजर रही थी। पर उसका कहीं पता नहीं था। मेरे मन में ख्याल आया, शायद काम पर गई होगी। तभी वह सामने एक पेंङ के नीचे दिखी। उसने नज़रें ऊपर की। उसकी हमेशा हँसती आखोँ में आसूँ भरे थे। मैं ने हङबङा कर पूछा – “ क्या हुआ? रो क्यों रही हो?”

***

उसका बाल विवाह हुआ था। कम वयस में दो बच्चे भी हो गये। वह पति अौर परिवार के साथ सुखी थी। उसके रुप, गुण अौर व्यवहार की हर जगह चर्चा अौर प्रशंसा होती थी। एक दिन उसका पति उसे जल्दी-जल्दी तैयार करा कर अपने साथ कचहरी ले गया। वहां एक अधेङ व्यक्ति को दिखा कर कहा – अब तुम इसके साथ रहोगी। मैं ने तुम्हें बेच दिया है।“ वह जब रो -रो कर ऐसा ना करने की याचना करने लगी। तब पति ने बताया, यह काम कचहरी में लिखित हुआ है। अब कुछ नहीं हो सकता है।

उसकी कहानी सुन कर , मुझे जैसे बिजली का झटका लगा। मैं अविश्वाश से चकित नेत्रों से उसे देखते हुए बोलने लगी – “ यह तो नाजायज़ है। तुम गाय-बकरी नहीं हो। तुम उसकी जायदाद नहीं । जो दाव पर लगा दे या तुम्हारा सौदा कर दे। उसने तुम से झूठ कहा है। यह सब आज़ के समय के लिये कलकं है।”

       उसने बङी ठंङी आवाज़ में कहा – “ तब मैं कम उम्र की थी। यह सब मालूम नहीं था। जब वह मुझे पैसे के लिये बेच सकता है। तब उसकी बातों का क्या मोल है। अब सब समझती हूँ। यह सब पुरानी बात हो गई।”  मैं अभी भी सदमें से बाहर नहीं आई थी। गुस्से से मेरा रक्त उबल रहा था। आक्रोश से मैं ने उससे पूछ लिया – “ फिर क्यों रो रही हो ऐसे नीच व्यक्ति के लिये।”

उसने सर्द आवाज़ में जवाब दिया – “ आज सुबह लंबी बीमारी के बाद उसकी मृत्यु हो गई। उसके परिवार के लोगों ने खबर किया है । पर तुम्हीं बताअो, क्या मैं विधवा हूँ? मेरा बूढा तो अभी जिंदा है। मैं उसके लिये नहीं रो रहीं हूँ। उसकी मौत की बात से मेरे बूढे ने कहा, अगर मैं चाहूँ, तो विधवा नियम पालन कर सकती हूँ। मैं रो रही हूँ , कि मैं किसके लिये पत्नी धर्म निभाऊँ? मैंने तो दोनों के साथ ईमानदारी से अपना धर्म निभाया है।
उसकी बङी-बङी आँखो में आँसू के साथ प्रश़्न चिंह थे। पर चेहरे पर वही पुरानी मोनालिसा की रहस्यमयी , उदास, दर्द भरी हलकी सी हँसी , जो हमेशा उसके होठों पर रहती थी।

 

 

छायाचित्र  इंद्रजाल से।