कोरोना महामारी में अनेकों देशों के लोग लॉकडाउन में घरों में बंद हैं। ऐसे में एक और घातक खतरा तेज़ी से बढ़ रहा है। इस दौरान लड़कियों अौर महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा बढ़ गये हैं। जिससे दुनिया भर में घरेलू हिंसा हेल्पलाइन और शेल्टरों में मदद के लिए कॉल बढ़ गए हैं।
भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी घर पर दुर्व्यवहार का रिपोर्ट करने वाली महिलाओं और बच्चों की संख्या बढ़ने की रिपोर्ट की है। हम सभी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि दुर्व्यवहार की वास्तविक संख्या, रिपोर्ट किये संख्या से बहुत अधिक होगी। हमारे देश भारत में, हमारी एक बड़ी आबादी कोरोना के वजह से आजीविका से वंचित हो गई है। ऐसे में महिलाओं अौर बच्चों के साथ हिंसा वृद्धि दुःखद है। यह समझने की जरुरत है कि इन सब का सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक परिणाम कितना भयंकर होगा।
अपने मनोवैज्ञानिक चिकित्सक स्वंय बने – संगीत खुशी को बढ़ा कर आपके तनाव व चिंता को कम कर सकता है।
Be your own therapist -music can boost happiness and reduce anxiety.
क्या आप जानते हैं गीत, संगीत सुनना हमारे लिए अच्छा है. विभिन्न शोधों और अध्ययन से यह पता चला है खुशियों भरा संगीत हमारा मूड अच्छा करता है. इससे हमारी बेचैनी और तनाव में कमी आती है. इससे एंटीबॉडी का स्तर यानी रोगों के खिलाफ लड़ने की हमारी शारीरिक क्षमता में भी सुधार आता है और पीड़ा या दर्द के अनुभूति में कमी आती है. मनपसंद और मधुर गानों के सुनने से मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन का बहाव होता है. न्यूरोलॉजिकल अध्ययन बताते हैं खुशगवार संगीत हमारे मस्तिष्क के ऐसे केंद्रों को सक्रिय करता है जिससे डोपामिन रिलीज होता है. यही कारण है कि लोरी , भजन, कीर्तन का प्रभाव सकारात्मक होता है.
यह कहानी बच्चों अौर बङों को बॉडी क्लॉक और इच्छा शक्ति के बारे में जानकारी देती है। मनोविज्ञान को समझते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चों को अच्छी बातें सरलता से सिखलायी जा सकती हैं। सही तरीके और छोटी-छोटी प्रेरणाओं की सहायता से बच्चों को समझाना बहुत आसान होता है। सच कहा जाय तब प्रेरणा, बॉडी क्लॉक और इच्छा शक्ति बच्चों के साथ-साथ बङों के लिये भी उपयोगी अौर महत्वपुर्ण है। यह कहानी इन्ही बातों पर आधारित है।
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे, तू जाग गया है? आशु ने पूछा- दादी तुम सुबह-सुबह कहाँ गई थी? “मंदिर बेटा” – दादी ने बताशे अौर मिश्री देते हुए कहा। आशु को बताशे स्वादिष्ट टाफी सा लगा। उसके सोंचा, अगर वह भी मंदिर जाए, तब उसे और बताशे-मिश्री खाने के लिए मिलेंगे। उसने दादी से पूछा – दादी, मुझे भी मंदिर ले चलोगी क्या? दादी ने पूछा – तुम सुबह तैयार हो जाओगे? हाँ, पर दादी मेरी नींद सुबह कैसे खुलेगी? आशु ने दादी की साड़ी का पल्ला खींचते हुए पूछा। तुम सुबह कैसे जाग जाती हो? दादी ने कहा – मेरे तकियों में जादुई घड़ी है। वही मुझे सुबह जगा देतें है। लो, आज इस तकिये को सच्चे मन से अपने जागने का समय बता कर सोना। वह तुम्हें जरूर जगा देगा। पर आशु, सही समय पर सोना तकि तुम्हारी नींद पूरी हो सके। उस रात वह तकिये को बड़े प्यार से सवेरे जल्दी जगाने कह कर सो गया। आशु स्कूल की छुट्टियों मेँ दादी के पास आया था। दादी से जादुई तकिये की बात सुनकर बड़ा खुश था क्योंकि उसे सुबह स्कूल के लिए जागने में देर हो जाती थी। मम्मी से डांट पड़ती। कभी स्कूल बस भी छूट जाती थी। अगले दिन सचमुच वह सवेरे जाग कर दादी के साथ मंदिर गया। पेड़ पर ढेरो चिड़ियाँ चहचहा रहीं थी। बगल में गंगा नदी बहती थी। आशु बरगद की जटाओं को पकड़ कर झूला झूलने लगा। पूजा के बाद दादी ने उसे ढेर सारे बताशे और मिश्री दिये। आशु को दादी के साथ रोज़ मंदिर अच्छा लगने लगा। जादुई तकिया रोज़ उसे समय पर जगा देता था। आज मंदिर जाते समय आशु को अनमना देख,दादी ने पूछा – आज किस सोंच मे डूबे हो बेटा? आशु दादी की ओर देखते हुए बोल पड़ा – दादी, छुट्टियों के बाद, घर जा कर मैं कैसे सुबह जल्दी जागूँगा? मेरे पास तो जादुई तकिया नहीं है। दादी प्यार से कहने लगी – आशु, मेरा तकिया जादुई नहीं है बेटा। यह काम रोज़ तकिया नहीं बल्कि तुम्हारा मन या दिमाग करता है। जब तुम सच्चे मन से कोशिश करते हो , तब तुम्हारा प्रयास सफल होता है।यह तुम्हारे इच्छा शक्ति या आत्म-बल के कारण होता है। दरअसल हमारा शरीर अपनी एक घड़ी के सहारे चलता है। जिससे हमेँ नियत समय पर नींद या भूख महसूस होती है। इसे मन की घड़ी या बॉडी क्लॉक कह सकतें हैं। यह घड़ी प्रकृति रूप से मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों सभी में मौजूद रहता है। इसे अभ्यास या इच्छा शक्ति द्वारा हम मजबूत बना सकतें हैं। आशु हैरान था। इसका मतलब है दादी, मुझे तुम्हारा तकिया नहीं बल्कि मेरा मन सवेर जागने में मदद कर रहा था? दादी ने हाँ मे माथा हिलाया और कहा – आज रात तुम बिना तकिये की मदद लिए, अपने मन में सवेरे जागने का निश्चय करके सोना। आशु नें वैसा ही किया। सचमुच सवेरे वह सही समय पर जाग गया। आज आशु बहुत खुश था। उसे अपने मन के जादुई घड़ी को पहचान लिया।
अपने मनोवैज्ञानिक स्वयं बने और अपने व्यवहार को समझे । फोमो एक ऐसी आशंका को कहते हैं जिसमें व्यक्ति फोन या इंटरनेट की दुनिया में हर समय अपनी उपस्थिति बनाये रखना चाहता है। अपनी अनुपस्थिति से परेशान होता या डरता है।
फीयर ऑफ मिसिंग आउट या फोमो एक नाकारात्मक मनोवैज्ञानिक स्थिति है। यह एक सोशल एंजाइटी है। यह लोगों से जुड़े रहने की इच्छा है। इससे अकेले छुटने का “अफसोस या डर भी कहा जा सकता है
लोगों के साथ जुड़ना या संबंध रखना मनुष्य का आवश्यक व्यवहार अौर मनोवैज्ञानिक आवश्यकता है। जो लोगों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को साकारात्मक रुप से प्रभावित करता है। पर आज के आधुनिक युग में नए और आधुनिक संचार साधनों के आने से इसका रूप बदल चुका है। एक तरफ ऑनलाइन /इंटरनेट और विभिन्न साधनों जैसे मोबाइल फोन, स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटॉप आदि सुविधाएं और सामाजिक नेटवर्क जैसे फेसबुक टिवटर हमारे जीवन में शामिल होने से बहुत से अद्भुत और अनूठे अवसर मेरी जिंदगी में शामिल हो गए हैं।
इनकी अच्छाइयों के साथ साथ इनकी कुछ सीमाएं भी है। यह समझना जरूरी है। इनके अत्यधिक इस्तेमाल से एक ऐसी स्थिति आती है। जिससे इन पर मनोवैज्ञानिक निर्भरता से चिंता या एंजाइटी जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है अौर इन से डिस्कनेक्ट होकर रहने पर बहुत लोगों में एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जिसके परिणाम स्वरूप मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है । जो कुछ लोगों के मूड अौर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगता है। जिससे एंजाइटी, मानसिक तनाव जैसी बातें व्यक्तित्व में आने लगती हैं।
अतः जरूरत है, इन चीजों का उपयोग एक सीमा तक अपनी समझदारी से किया जाए।
मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहारों को भावनात्मक दुर्व्यवहार भी कहा जाता है। यह एक व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को परेशान करने अौर उस पर हावी होने के लिये किया जाता है, जिसके मनोवैज्ञानिक यानि मानसिक आघात – चिंता, अवसाद, तनाव हो सकता हैं। यह अक्सर ङराने, धमकाने, गैसलाइटिंग और कार्यस्थल में दुर्व्यवहार,कड़वा, दोहरे अर्थ की बातें, उलाहना, व्यंग शामिल हो सकते हैं। यह अत्याचार, अन्य हिंसा, तीव्र या लंबे समय तक किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, जैसे नजरबंदी, झूठे आरोप, झूठे विश्वास और अत्यधिक मानहानि। कभी-कभी मीडिया द्वारा प्रतिशोध भी देखा गया है। भावनात्मक दुर्व्यवहार की परिभाषा है: “किसी भी कृत्य जिसमें अलगाव, मौखिक हमला, अपमान, धमकी, घुसपैठ, या कोई अन्य ऐसा व्यवहार शामिल हो सकता है जो पहचान, गरिमा और आत्म-मूल्य की भावना को कम कर सकता है।” मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार घातक दुर्व्यवहार के रूप में जाना जाता है। शोधकर्ताओं इसे “क्रोनिक मौखिक आक्रामकता” का नाम भी दिया है। जो लोग भावनात्मक दुर्व्यवहार से पीड़ित होते हैं उनमें बहुत कम आत्मसम्मान होता है, व्यक्तित्व में बदलाव हो सकता है। वे उदास, चिंतित या आत्मघाती भी हो सकते हैं। भावनात्मक शोषण की एक सार्थक परिभाषा है – “भावनात्मक दुर्व्यवहार किसी भी तरह का दुरुपयोग है जो प्रकृति में शारीरिक होने के बजाय भावनात्मक है। इसमें मौखिक दुरुपयोग और निरंतर आलोचना से लेकर सूक्ष्म सूक्ष्मतर, छेड़छाड़, और कभी भी प्रसन्न होने देने से इंकार जैसी कुछ भी बातें शामिल हो सकती हैं। भावनात्मक दुरुपयोग कई रूप ले सकता है। अपमानजनक व्यवहार के तीन सामान्य पैटर्न में आक्रामक, इनकार करना, और कम करना शामिल है ”।
ऐसा करनेवाले के लक्षण अौर व्यवहार –
चिल्लाना, अपमान करना, मजाक उङाना, ज्यादातर पीड़ित के लिए नकारात्मक बयानों का उपयोग करना, धमकी भरी बातें और धमकी देना, उपेक्षा करना , अौर लोगों से अलग करना या अलग कारने की कोशिश करना, पीड़िता की छवि को धूमिल करने की कोशिश, अपमानजनक बातें, गलत किये गये वयवहारों से इनकार।
निवारण
एक हर जगह हो सकता है, जैसे कि – परिवार, कार्यस्थल या अंतरंग संबंध में। दुरुपयोग की पहचान रोकथाम के लिए पहला कदम है। अक्सर दुर्व्यवहार पीड़ितों के लिए ऐसे व्यवहार को पहचानना अौर स्वीकार करना मुश्किल होता है। वे पेशेवर मदद के लिए जा सकते हैं। अनेक गैर-लाभकारी संगठन NGO हैं जो एस प्रदान करते हैं घरेलू और दुर्व्यवहार के लिए सहायक और रोकथाम सेवाएं, जैसे कि पुरुषों और महिलाओं के लिए घरेलू दुर्व्यवहार हेल्पलाइन (संयुक्त राज्य अमेरिका में, घरेलू हिंसा के पीड़ितों के लिए सूचना और संकट के हस्तक्षेप की पेशकश करने के लिए कर्मचारियों और प्रशिक्षित स्वयंसेवकों द्वारा संचालित है।
विदेशों में सहायता प्रदान की जाती हैं. हमारे देश में ऐसी सुविधाएं बहुत कम है। इसलिए या तो मनोवैज्ञानिकों की प्रोफेशनल सहायता लें या स्वयं ही ऑटो सजेशन या सेल्फ काउंसिलिंग द्वारा अपनी समस्या को सुलझाने की कोशिश कर सकते हैं। घबराएँ नहीं, बस अपने आप को मजबूत बनाने और समझदार होने की जरूरत है।
(यह कहानी बच्चों को बॉडी क्लॉक और इच्छा शक्ति के बारे में जानकारी देती है ।बाल मनोविज्ञान को समझते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चों को अच्छी बातें सरलता से सिखलायी जा सकती हैं। सही तरीके और छोटी-छोटी प्रेरणाओं की सहायता से बच्चों को समझाना बहुत आसान होता है। यह कहानी इन्ही बातों पर आधारित है। इस साल बॉडी क्लॉक पर आधारित खोज को नोबल पुरस्कार मिला है, इसलिये अपनी इस कहानी को फिर से शेयर कर रही हूँ।)
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे, तू जाग गया है? आशु ने पूछा- दादी तुम सुबह-सुबह कहाँ गई थी? मंदिर बेटा, दादी ने बताशे मिश्री देते हुए कहा। आशु को बताशे स्वादिष्ट टाफी सा लगा। उसके सोंचा, अगर वह भी मंदिर जाए, तब उसे और बताशे-मिश्री खाने के लिए मिलेंगे। उसने दादी से पूछा – दादी, मुझे भी मंदिर ले चलोगी क्या?दादी ने पूछा – तुम सुबह तैयार हो जाओगे? हाँ, पर दादी मेरी नींद सुबह कैसे खुलेगी? आशु ने दादी की साड़ी का पल्ला खींचते हुए पूछा। तुम सुबह कैसे जाग जाती हो?
दादी ने कहा – मेरे तकियों में जादुई घड़ी है। वही मुझे सुबह जगा देतें है। लो, आज इस तकिये को सच्चे मन से अपने जागने का समय बता कर सोना। वह तुम्हें जरूर जगा देगा। पर आशु, सही समय पर सोना तकि तुम्हारी नींद पूरी हो सके। उस रात वह तकिये को बड़े प्यार से सवेरे जल्दी जगाने कह कर सो गया।
आशु स्कूल की छुट्टियों मेँ दादी के पास आया था। दादी से जादुई तकिये की बात सुनकर बड़ा खुश था क्योंकि उसे सुबह स्कूल के लिए जागने में देर हो जाती थी। मम्मी से डांट पड़ती। कभी स्कूल बस भी छूट जाती थी।
अगले दिन सचमुच वह सवेरे जाग कर दादी के साथ मंदिर गया। पेड़ पर ढेरो चिड़ियाँ चहचहा रहीं थी। बगल में गंगा नदी बहती थी। आशु बरगद की जटाओं को पकड़ कर झूला झूलने लगा। पूजा के बाद दादी ने उसे ढेर सारे बताशे और मिश्री दिये।
आशु को दादी के साथ रोज़ मंदिर अच्छा लगने लगा। जादुई तकिया रोज़ उसे समय पर जगा देता था। आज मंदिर जाते समय आशु को अनमना देख,दादी ने पूछा – आज किस सोंच मे डूबे हो बेटा? आशु दादी की ओर देखते हुए बोल पड़ा – दादी, छुट्टियों के बाद, घर जा कर मैं कैसे सुबह जल्दी जागूँगा? मेरे पास तो जादुई तकिया नहीं है।
दादी प्यार से कहने लगी – आशु, मेरा तकिया जादुई नहीं है बेटा। यह काम रोज़ तकिया नहीं बल्कि तुम्हारा मन या दिमाग करता है। जब तुम सच्चे मन से कोशिश करते हो , तब तुम्हारा प्रयास सफल होता है।यह तुम्हारे इच्छा शक्ति या आत्म-बल के कारण होता है। दरअसल हमारा शरीर अपनी एक घड़ी के सहारे चलता है। जिससे हमेँ नियत समय पर नींद या भूख महसूस होती है। इसे मन की घड़ी या बॉडी क्लॉक कह सकतें हैं। यह घड़ी प्रकृति रूप से मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों सभी में मौजूद रहता है। इसे अभ्यास या इच्छा शक्ति द्वारा हम मजबूत बना सकतें हैं।
आशु हैरान था। इसका मतलब है दादी, मुझे तुम्हारा तकिया नहीं बल्कि मेरा मन सवेर जागने में मदद कर रहा था?दादी ने हाँ मे माथा हिलाया और कहा – आज रात तुम बिना तकिये की मदद लिए, अपने मन में सवेरे जागने का निश्चय करके सोना।आशु नें वैसा ही किया। सचमुच सवेरे वह सही समय पर जाग गया। आज आशु बहुत खुश था। उसे अपने मन के जादुई घड़ी को पहचान लिया।
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