मुकम्मल जहाँ

वह मुकम्मल जहाँ नहीं,

किसी के लिए।

जहाँ हँसी से ज़्यादा

आँसू हों।

खिलखिलाहटों से ज़्यादा

दर्द हो।

सुकून से ज़्यादा

ठोकरें हो।

पत्थर

 

हम गलते-पीघलते नहीं ,
इसलिये 
पत्थर या पाषण कहते हो,
पर खास बात हैं कि
हम पल-पल बदलते नहीं।
अौर तो अौर, हम से
लगी ठोकरें क्या
तुम्हें कम सबक सिखाती हैं??