जीवन के रंग – 202

जीवन की परीक्षाओं को हँस कर,

चेहरे की मुस्कुराहट के साथ झेलना तो अपनी-अपनी आदत होती है.

जीवन ख़ुशनुमा हो तभी मुस्कुराहट हो,

यह ज़रूरी नहीं.

 

ज़िंदगी के रंग – 53

सूरज ङूबने वाला था,

ना जाने क्यों ठिठका ?

अपनी लालिमा के साथ कुछ पल बिता

पलट कर बोला – अँधेरे से ङरना मत ।

यह रौशनी-अधंकार कालचक्र है।

नया सवेरा लेकर

मैं कल फिर आऊँगा !!!!!

 

 

image by Rekha Sahay

जीवन के रंग – 36

शीतल हवा का झोंका बहता चला गया।

पेङो फूलों को सहलाता सभी को गले लगाता ……

हँस कर जंगल के फूलों ने कहा –

वाह !! क्या आजाद….खुशमिजाज….. जिंदगी है तुम्हारी।

पवन ने मुस्कुरा कर कहा –

क्या कभी हमें दरख्तों-ङालों,  खिङकियों-दरवाज़ों पर सर पटकते….

गुस्से मे तुफान बनते नहीं देता है?

हम सब एक सा जीवन जीते हैं।

गुस्सा- गुबार, हँसना-रोना , सुख-दुख,आशा-निराशा

यह सब तो हम सब के

रोज़ के जीवन का हिस्सा है!!!

जीवन के रंग – 32

इस जीवन यात्रा में…..

एक बात तो बङे अच्छे से समझ आ गई,

अपनी लङाई खुद ही लङनी  होती है।

इसमें

शायद ही कोई साथ देता है,

क्योंकि

  लोग   अपनी लङाईयों अौर उलझनों में उलझने होते हैं।