ढलती धुआँ धुआँ सी
शाम सामने आते रात के
साँवले अँधेरे को ताक,
हँसी और बोली आज़ गुज़र गई,
फिर कल आऊँगी।
भीगी भीगी शाम की दहलीज़ पर
तुम फिर मुझे ढूँढते आओगे।
पर तुम करो आसनाई चरागों से।
हमें अंधेरे रास नहीं आते।

ढलती धुआँ धुआँ सी
शाम सामने आते रात के
साँवले अँधेरे को ताक,
हँसी और बोली आज़ गुज़र गई,
फिर कल आऊँगी।
भीगी भीगी शाम की दहलीज़ पर
तुम फिर मुझे ढूँढते आओगे।
पर तुम करो आसनाई चरागों से।
हमें अंधेरे रास नहीं आते।


ज़िंदगी के रंग – 225
ज़माने की राहें रौशन करते वक्त,
ग़र कोई आपकी सादगी भरी बातों के
मायने निकले।
समझ लीजिए
सामने वाले ने मन बना रखा है
आपकी बातों को नकारने का।
ना ज़ाया कीजिए वक्त अपना।
बेहिचक, बेझिझक बढ़ जायें
अपनी राहों पर।
लोगों को अक्सर देखा है,
चिराग़ों को बुझा,
हवा के झोंकों पर तोहमत लगाते।
इसे इबादत कहें या डूबना?
ज़र्रे – ज़र्रे को रौशन कर
क्लांत आतिश-ए-आफ़ताब,
अपनी सुनहरी, पिघलती, बहती,
रौशन आग के साथ डूब कर
सितारों और चिराग़ों को रौशन होने का मौका दे जाता है.

अर्थ:
आफ़ताब-सूरज
आतिश – आग
इबादत-पूजा
क्लांत –थका हुआ
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