ढलती धुआँ धुआँ सी शाम !

ढलती धुआँ धुआँ सी

शाम सामने आते रात के

साँवले अँधेरे को ताक,

हँसी और बोली आज़ गुज़र गई,

फिर कल आऊँगी।

भीगी भीगी शाम की दहलीज़ पर

तुम फिर मुझे ढूँढते आओगे।

पर तुम करो आसनाई चरागों से।

हमें अंधेरे रास नहीं आते।