जो मिला उसमें जीना सीखा लिया।
जो ना मिला उसमें गुज़ारा करना सीख लिया।
चाहना, पसंद करना छोड़ना सीख लिया।
घूमते रही इर्दगिर्द तुम्हारे,
घड़ी की सुइयों की तरह।
क्या अपने आप को था जीत लिया?
या खो दिया अस्तित्व अपना?
यही होती है बज़्म-ए-हस्ती औरत की।
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