दरख़्तों…पेड़ों को कटाते,
पसीने से तर-ब-तर पेशानी और चेहरा पोछते,
छाया खोजती निगाहे ऊपर उठीं,
था खुला आकाश और चिलचिलाती धूप !
कटे कराहते दरख़्तों और डालियों ने कहा,
अब तपिश से बचाने को हमारा साया….छाया नहीं.
करो इंतज़ार धूप ढलने का.
तुमने हमारे साये में हमें हीं काट डाला!
image- Aneesh
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