तुमने हमारे साये में हमें हीं काट डाला!

दरख़्तों…पेड़ों को कटाते,

पसीने से तर-ब-तर पेशानी और चेहरा पोछते,

छाया खोजती निगाहे ऊपर उठीं,

था खुला आकाश और चिलचिलाती धूप !

कटे कराहते दरख़्तों और डालियों ने कहा,

अब तपिश से बचाने को हमारा साया….छाया नहीं.

करो इंतज़ार धूप ढलने का.

तुमने हमारे साये में हमें हीं काट डाला!

 

image- Aneesh

जिंदगी के रंग -206

कलम थामे

     लिखती उंगलियाँ आगे बढ़ती जातीं हैं।

           तब  एक जीवंत रचना उभरती हैं।

                ये उंगलियाँ संदेश हैं –

                        जिंदगी आगे बढ़ते जाने का नाम है।

                                 आधे पर रुक कर,

पंक्तियोँ…लाइनों को अधूरा छोङ कर,

       लिखे अक्षरों को आँसूअों से धुँधला कर,

                 सृजनशीलता…रचनात्मकता का अस्तित्व संभव नहीं।

                         यही पंक्तियाँ… कहानियाँ… कविताएँ,

                                   पन्नों पर उतर,

                                             आगे बढ़नें  की राहें  बन जातीं हैं। 

 

खालीपन

अपने अंदर के खालीपन को भरने के लिये

हमने कागज़ पर उकेरे अपने शब्द अौर भाव।

पर धरा का खालीपन कौन भरेगा?

पेङों, घासोँ को काट कागद…कागज़ बनने के बाद?