ज़ुबान
ज़ुबान बंद रखना
तो ठीक है।
पर बिन बोले बातों का
वजन, बोझ बन जाता है।
और चुभता है, टूटे आईने
की किरचियों सा।
खामोशी की अदा
तब अच्छी है।
जब सुनने वाले के
पास मौन समझने
वाला दिल हो।
वरना लोग इसे
कमजोरी समझ लेतें हैं।
ज़ुबान
ज़ुबान बंद रखना
तो ठीक है।
पर बिन बोले बातों का
वजन, बोझ बन जाता है।
और चुभता है, टूटे आईने
की किरचियों सा।
खामोशी की अदा
तब अच्छी है।
जब सुनने वाले के
पास मौन समझने
वाला दिल हो।
वरना लोग इसे
कमजोरी समझ लेतें हैं।