मरते देश #DyingAfganistan

अभी तक लगता था

मर रहीं हैं नदियाँ,

गल रहें हैं ग्लेशियर,

धुँधले हो रहे हैं अंतरिक्ष,

कूड़ेदान बन रहे है सागर,

धरा और पर्वत…..

इंसानों की मलिनता से।

अब समझ आया

कई देश भी मर रहे हैं।

फ़र्क़ पड़ता है,

और दर्द होता है,

सिर्फ़ भुक्तभोगियों को।

बाक़ी सब जटिल जीवन के

जद्दोजहद में उलझे है।

विश्व राजनीति की पहेली है अबूझ।

6 thoughts on “मरते देश #DyingAfganistan

  1. हम खुद ले
    हमारे जीवन का सांस

    धरती माता
    देखता है
    हमारे सारे अत्याचार भी

    जब अब कोई नहीं रहता
    वह करेगी
    हमारे बिना
    नया जीवन
    पुनर्जीवित होने के लिए

    Liked by 2 people

Leave a reply to TanvirKaur Cancel reply