सुना है राम और रावण की राशि एक हीं थी,
पर कर्म अलग।
ऐसा हीं हाल है मीडिया का,
कुछ हैं पर्दाफ़ाश और कुछ सनसनीबाज़।
जनता है हैरान,
कैसे जाने कौन ईमानदार कौन चालबाज़ ?
किसकी खबरें सच मानें ?
किसकी बातें बेमानी ?
कुछ मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक जज बन
मिनटों में हत्या-आत्महत्या सुलझाते हैं।
शांत रहने,
सुशांत ना बनने की चेतावनी दे जाते हैं।
कम सुनाते है अपराध,
ड्रग्स, मर्डर, चाइल्ड ट्रैफ़िकिंग या फ़्लेश ट्रेडिंग की खबरें।
सर्वाधिक अख़बारों अौर खबरों वाले हमारे देश का यह हाल क्यों?
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ – मीडिया
टिका है कलम या कि तलवार पर?
शक्ति, धन या राजनेताअों पर?
चैनलों की टीआरपी या रेटिंग पर?
गर कलम खो देती है अपनी ताकत,
जागरुकता अौर सच्चाई ।
तब जाने अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा?
यहाँ तो कई शाख़ पर उल्लू बैठे हैं।
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