ज़िंदगी के रंग -168

चाय की प्यालियाँ भी

हमसफ़र और दोस्त हैं,

आने जाने वाले पलों कीं.

कई पल गुज़रे हैं ज़िंदगी के

तुम्हारे और चाय की प्याली के साथ

कभी फीकी, कभी मीठी,

कभी सोन्धी-सोन्धी सी !!

10 thoughts on “ज़िंदगी के रंग -168

    1. आभार , अगर महसूस करना चाहें तो चाय की प्याली के साथ बिताया हुआ समय भी ख़ूबसूरत होता है. 😊

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    1. यह जानकर अच्छा लगा कि आपके ख़यालात भी ऐसे हीं हैं.
      मैं तो ज़िंदगी की यादों को छोटी छोटी सच्चाइयों और बातों के साथ जोड़ कर लिखती रहतीं हूँ .
      आपका बहुत शुक्रिया जितेंद्र जी.

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  1. बहुत ही खूबसूरती से लिखी लाइनें | सुबह की चाय का बेहतरीन समय याद आ गया | और कोइ ना भी हो साथ तो चाय की प्यालियाँ तो हैं ही !
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    मैंने आपकी कविता एक मित्र को सुनाई
    परिवार से दूर शहर में रहता है भाई
    उसे ये नायाब कविता कतई नहीं सुहाई
    कहने लगा
    कुछ तो समझो मेरे जीवन की सच्चाई
    अपनों से दूर मुझे
    चाय की प्याली का साथ भी ना मिल पाया
    सुक्खी चायवाले के यहाँ रोज़
    मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पी
    वहीं कूड़ेदान में है गिराया |

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    1. आभार रविंद्र जी . बिलकुल सही.
      अगर दिल से महसूस किया जाए तब, कुछ सामान्य सी बातें हीं जीवन में विशिष्ट बन जातीं हैं. जैसे चाय की प्याली . और अगर यह वक़्त किसी ख़ास के साथ बीते तो और यादगार बन जातीं हैं.

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