बर्बरता और क्रूरता की इंतिहा हो गई .
किसी की आँखों का मोल नहीं है
किसी के जीवन का मूल्य नहीं .
मासूमियत भी नज़र नहीं आई .
है अनमोल सिर्फ़ अपनी दुश्मनी, 5 हज़ार
रुपये और अपनी हैवानियत !!!
बर्बरता और क्रूरता की इंतिहा हो गई .
किसी की आँखों का मोल नहीं है
किसी के जीवन का मूल्य नहीं .
मासूमियत भी नज़र नहीं आई .
है अनमोल सिर्फ़ अपनी दुश्मनी, 5 हज़ार
रुपये और अपनी हैवानियत !!!
I feel sorry about this! Nothing of the sort to be liked!
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It’s beyond imagination. How somebody can do that.
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लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं।मानवता कहां चली गई। हम गुस्सा किस पर करें। ये समाज कैसा बनता जा रहा है या अब समाज ही नहीं।
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हाँ सही बात है।लोग क्रूरता की हदपारकर गए हैं ।समझनहीं आता हैं कि लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं।
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बेहद चिंताजनक।
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हाँ.
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