मातृत्व के मर्मांतक और
असहनीय कष्ट को
रात्रि के नीरवता में
अकेले सहना क्या सरल है?
उस माँ के साहस और
हौसले को सलाम है।
क्या हम पाषाण युग में रहते हैं?
या लोगों के दिल पाषाण …
पत्थर …. के हो चुके हैं?
मातृत्व के मर्मांतक और
असहनीय कष्ट को
रात्रि के नीरवता में
अकेले सहना क्या सरल है?
उस माँ के साहस और
हौसले को सलाम है।
क्या हम पाषाण युग में रहते हैं?
या लोगों के दिल पाषाण …
पत्थर …. के हो चुके हैं?
बहुत ही हृदयस्पर्शी कविताओं के छंदों में खोए हुए बेटे की माँ का रोना है। हम वास्तव में अपने दिल बदल रहे हैं। हमें अब कोई दया नहीं है। मुझे आपकी कविता पसंद आई। यह एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश है।
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ऐसी ख़बरें मुझे तकलीफ़ देतीं हैं. आजकल लोग दया , सहानुभूति जैसे व्यवहार भूल गए हैं. पर अस्पतालों में तो मरीज़ की देखभाल होनी चाहिये.
मालूम नहीं इस घटना पर govt भी कोई action लेगी या नहीं .
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मैं एक अच्छे दिन या रात का इंतजार करता हूं
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Thank you 😊.
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