एक ही साथ नभ में छिटके चाँद और तारा की प्रेम कथा सनातन और सदियों पुरानी हैं. दोनो में प्रेम हो गया . रात में छिटकी चाँद की रौशनी और प्रणय में डूब वृहस्पति की पत्नी तारा अपने प्रिय चंद्रमा के अंक में खो गई. उनके प्रेम चिन्ह के रूप मेंजन्म लिया बुध ने .
वृहस्पति अपनी पत्नी के इस धोखे और इस कटु सत्य से व्यथित हो गए और बुध को नपुंसक – ना नर ना नारी रहने का श्राप दे बैठे .
पारिवारिक जीवन व्यवस्था को बनाए रखने के लिए देवराज इंद्र ने तारा को चंद्रमा के पास वापस पति वृहस्पति के पास भेजा और उसके संतान का पिता वृहस्पति को माना.
तब से वैदिक नियम में विवाह के द्वारा पितृत्व का निर्धारण का नियम बना. साथ ही बुध को नपुंसक ग्रह माना जाने लगा.





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