उठो द्रौपदी

उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालो

अब गोविन्द न आयेंगे।

कब तक आस लगाओगी तुम

बिके.. हुए अखबारों से।

कैसी रक्षा मांग रही हो

दु:शासन…. दरबारों से।

स्वंय… जो लज्जाहीन पड़े हैं

वे क्या लाज बचायेंगे।

उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालो

अब गोविन्द न आयेंगे।Il१॥

कल तक केवल अंधा राजा

अब गूंगा बहरा भी है।

होंठ सिल दिये हैं जनता के

कानों पर पहरा भी है।

तुम्ही कहो ये अश्रु तुम्हारे

किसको क्या समझायेंगे।

उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालो

अब गोविन्द न आयेंगे।ll२॥

छोड़ो मेंहदी भुजा संम्भालो

खुद ही अपना चीर बचा लो।

द्यूत बिछाये बैठे शकुनि

मस्तक सब बिक जायेंगे।

उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालो

अब गोविद न आयेंगे। Il३॥

अटलबिहारी वाजपेयी

9 thoughts on “उठो द्रौपदी

  1. कल तक केवल अंधा राजा

    अब गूंगा बहरा भी है।

    होंठ सिल दिये हैं जनता के

    कानों पर पहरा भी है।
    waah kyaa khubsurati se likha hai…..jabardast kataksh aaj ke insaanon aur nayko par …..sach kaltak sirf andhe they ab to bahre bhi ban gaye hain log…….

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    1. हाँ,बहुत सही पंक्तियाँ लिखीं हैं. वाजपेयी जी बेहद सुलझे और सच्चे विचारों के कवि और नेता थे . समाज की अव्यवस्था पर कविता के माध्यम से कुठाराघात किया है .

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