कहते है – यह ज़िंदगी बुलबुला है.
पर जीवन के रंगमंच पर
ना तो इसे फूँक मार
अस्तित्व मिटाया जा सकता है
ना नियति के झोंके से
बचाया जा सकता है .
हम सब किसी और की
ऊँगलियों से बँधे,
नियंता के हाथों
की कठपुतलिया हैं.
और सब जानते – समझते भी
ज़िंदगी और मौत का रंग
अंदर तक हिला जाता है……….
…
Unknown

