पीपल के पत्ते

बिखर आये पतझङ के मौसम में
सूखते….
लाल, पीले, भूरे , शुष्क होते पत्ते
उङते गर्दो-गुबार से धूल धुसरित थे।
तभी गर्म , तेज़ हवा के झोंके ने
अश्वत्थ की ङालियों को हिला दिया
अौर पर्णपाती…. पत्तों का झङना शुरू हो गया।
अद्भुत नज़ारा था –
मृत गोल -गोल, घुमते- नाचते
गिरते, झङते, पीपल के पत्ते मानो
खुशी मनाते…….
सूफी दरवेश नृत्य कर रहे हों ।
मृत्यु वरण करते इन पर्ण -पत्तों में
यह हौसला कहाँ से आया?

20 thoughts on “पीपल के पत्ते

      1. मेरे गाँव नें सूरज से पहले उठ जाते हैं किसान,मेरे गाँव में

        खेतों में काम करने जाते हैं लेकर सतुवा पिसान,मेरे गाँव.

        बूढ़े पेड़ के नीचे बैठकर आराम फरमाते हैं सब,

        गाँव का रक्षक हैं बूढ़ा पीपल जिसे कहते ब्रह्म स्थान,मेरे गाँव में.

        पश्चिम से आती है एक नहर मेरे गाँव मेरे में,

        गाँव से गुजरती सड़क ही गाँव की पहचान ,मेरे गाँव में.

        गेहूँ, धान,ऊख वगैरह की खेती होती है यहाँ,

        यहाँ धरती सोना उगलती हैॆ,मोती बरसाता है आसमान,मेरे गाँव में.

        गाँव में’देवी का मन्दिर’हैं,और एक पवित्र मस्जिद हैं,

        मजहबी भेदभाव भूलकर एक साथ रहते हैं हिन्दु मुसलमान,मेरे गाँव में.

        रात में बरगद और शीशम के पेड़ों पर जुगनू मंडराते हैं,

        दादी सुनाती हैं बच्चों को परियों की दास्तान,मेरे गाँव में.

        शाम को बच्चे कुएँ के चबूतरे पे गोटी खेलते हैं,

        खुशी खुशी रहते हैं सब महिलाएँ,बच्चे,बूढ़े,जवान ,मेरे गांव में.

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      2. बेहद खूबसूरत है तुम्हारा गाँव राज अौर उसका वर्णन। मुझे कभी किसी गाँव में रहने का मौका नहीं मिला है लेकिन तुम्हारा लिखा इतना जीवंत है कि मुझे लगा मैं ग्राम दर्शन कर रहीं हूँ। आभार।

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