
ज़िंदगी बहती नदी सी लगती है हमेशा.
कभी भँवर सी गोल गहरी घुमाती जिंदगी .
कभी किनारे पर सर पटकती जल लहरों सी.
कभी शांत पर बेहद गहरी जैसे
पैरो के नीचे जमीं ना होने का एहसास हो .
कभी ऊपर…… कभी नीचे…..
कभी छिछली सी जलधार सी लगाती है .
अपनी मुक्त नीलम नीलाभ जल की ख़ुशियों से भरी छलकती छलछलाती .
और फिर मानो बरसात की झड़ी से सब कुछ मलिन मटमैला होता जीवन .
सरल सहज बहती जिंदगी जल प्रपात का कब रूप ले लेती है पता हीं नहीं चलता .
प्रकृति के साथ बंधी हुई ……
सागर तक …..अनंत तक …..ना जाने कब तक?
ऐसे हीं चलती है यह जीवन यात्रा …..यह जिंदगी .
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