सुबह का ऊगता सूरज,
नीलम से नीले आकाश में,
लगता है जैसे गहरे लाल रंग का माणिक…..रुबी…. हो,
अंगूठी में जङे नगीने की तरह।
दूसरे पहर में विषमकोण में कटे हीरे
की तरह आँखों को चौंधियाने लगता है ।
सफेद मोती से दमकते चाँद के आगमन की आगाज़ से
शाम, पश्चिम में अस्त होता रवि रंग बदल फिर
पोखराज – मूंगे के पीले-नारंगी आभा से
रंग देता है सारा आकाश।
रंग बदलते सूरज
की रंगीन रश्मियाँ धरा को चूमती
पन्ने सी हरियाली से
समृद्ध करती हैं…
image courtesy google.

Such beautiful words so well penned, Rekha and for sure it spreads colours of vibrancy. Great poem.
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thank you Kamal. 😊
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Welcome Rekha
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🙂
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Thanks dear
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khubsurat shabd aur khubsurat lekhan.
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thank you Madhusudan.
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सुंदर रचना
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धन्यवाद ।
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Bahut sundar
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आपका आभार!
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प्रत्येक दृष्टि से अद्भुत और अनूठी रचना । अभिभूत हूँ पढ़कर और देखकर ।
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मेरे लिये बङी प्रसन्नता की बात है कि यह कविता आपको पसंद आई। प्रकृति का सौंदर्य कभी-कभी अभिभूत कर ऐसी रचना लिखने के लिये प्रेरित कर देता है।
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