कोयल से लगभग सभी परिचित होंगे। कोयल अपनी कुक्कू की आवाज़ के लिए पहचानी जाती है। बसंत ऋतु में अमराइयों के बीच से कोयल बोल उठती है कुहू-कुहू और एक साथ सहसा सैकड़ों लोगों के हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। साहित्य में सहस्रों पंक्तियाँ कोयल की प्रशंसा में लिखी जा चुकी हैं।
कोयल या कोकिल ‘कुक्कू कुल’ का पक्षी है, जिसका वैज्ञानिक नाम ‘यूडाइनेमिस स्कोलोपेकस स्कोलोपेकस’ है। नर कोयल की पहचान है क़ि यह नीलापन लिए काले रंग का होता है, तो मादा तीतर की तरह धब्बेदार और चितकबरी होती है। नीड़ परजीविता इस कुल के पक्षियों की विशेष नेमत है यानि ये अपना घोसला नहीं बनाती। ये दूसरे पक्षियों विशेषकर कौओं के घोंसले के अंडों को गिराकर अपना अंडा उसमें रख देती है। और काग दंपति बड़े लाड़-प्यार से कोयल के बच्चों को अपनी संतान समझकर पालते-पोसते हैं और जब वे उड़ने योग्य हो जाते हैं…
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wakayee…..ekdam nayee jankari……bahut khub….
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Dhanyvaad Madhusudan
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