जिंदगी के रंग – 29

प्रश्न करते -करते जिंदगी से,

थक कर जब उत्तर की आस छोङ दी…..

तब  वह जवाब अपने आप देने लगी।

दूसरों को देखना छोङ, खुद को देखो…..

मुक्त कर दो अपने आप को –

गलती, प्यार, गुस्सा विश्वासघात, हार-जीत से………….

26 thoughts on “जिंदगी के रंग – 29

    1. आभार, एक बात आपसे share करुँ? मैं अक्सर कविताएँ लिखती हूँ, जब परेशान / stress में होती हूँ। 🙂 🙂
      आपको पसंद आई। यह मेरे लिये खुशी की बात है।

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      1. बिल्कुल सही कहा—
        भावनाओं में हम हमेशा नही बहते,
        भावनाओ का सैलाब भी हमेशा नही उबलते,
        जब उबलते हैं तो कोरा कागज रंगीन हो जाती है,
        कुछ इधर कुछ उधर सारे भावनाओं को कलम से नहीं सम्हलते,
        फिर शुरू होती है प्रतिक्रिया का दौर,
        जिसमे उलझ सबकुछ भूल जाते हैं,
        कब सुबह से शाम हुई समझ नही पाते हैं,
        फिर मुस्कुराहट का दौर शुरू होता है,
        भावनाओ के सैलाब में सारे stress फिर हैं बहते।

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      2. आपने मेरी बातों को बङा खूबसूरत रुप दे दिया। सही है,
        stress अगर सही दिशा में काम में आये तो
        रचनात्त्मकता आ जाती है अौर तनाव कम हो जाता है।
        आभार आपका। 🙂

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