कन्यादान महादान – कई प्रश्न

कन्यादान के समय कहा जाने वाला मंत्र –
अद्येति………नामाहं………नाम्नीम् इमां कन्यां/भगिनीं सुस्नातां यथाशक्ति अलंकृतां, गन्धादि – अचिर्तां, वस्रयुगच्छन्नां, प्रजापति दैवत्यां, शतगुणीकृत, ज्योतिष्टोम-अतिरात्र-शतफल-प्राप्तिकामोऽहं ……… नाम्ने, विष्णुरूपिणे वराय, भरण-पोषण-आच्छादन-पालनादीनां, स्वकीय उत्तरदायित्व-भारम्, अखिलं अद्य तव पत्नीत्वेन, तुभ्यं अहं सम्प्रददे। वर उन्हें स्वीकार करते हुए कहें- ॐ स्वस्ति।

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अद्येति नामाहं नाम्नीम् इमां कन्यां……तुभ्यं अहं सम्प्रददे।।

कन्या के हाथ वर के हाथों में सौंपनें के लिये,

ना जाने क्यों बनी यह परम्परा?

कन्या को दान क्यों करें?

जन्म… पालन-पोषण कर कन्या किसी और को क्यों दें ?

विवाह के बाद अपनी हीं क्यों ना रहे?

कन्या के कुल गोत्र अब पितृ परम्परा से नहीं, पति परम्परा से चले? 

अगर पिता ना रहें ता माँ का कन्या दान का हक भी चला जाता है।

गर यह महादान है, तब मददगार

 ता-उम्र अपने एहसान तले क्यों हैं दबाते?

है किसी के पास इनका सही, अर्थपूर्ण व तार्किक जवाब?

जिंदगी के आईने में कई बेहद अपनों के कटु व्यवहार

की परछाईं ने बाध्य कर दिया प्रश्नों  के लिये?

वरना तो बने बनाये स्टीरियोटाइप जिंदगी

 जीते हीं रहते हैं हम सब।

Youth Broke Marriage After Engagement - सगाई के बाद युवक ने व्हाट्सअप पर  शादी तोडऩे का भेजा मैसेज | Patrika News

 

मोम

मेरे अस्तित्व का, मेरे वजूद का सम्मान करो।

हर बार किसी के बनाए साँचें में ढल जाऊँ,

यह तब मुमकिन है, जब रज़ा हो मेरी।

यह मैं हूँ , जलती और गलती हुई मोम नहीं।

मीठी गुफ़्तगू

Logorrhoea / logorrhoea/ press speech is a communication disorder that causes excessive wordiness and repetitiveness, which can cause incoherency. Logorrhea is sometimes classified as a mental illness, though it is more commonly classified as a symptom of mental illness or brain injury.

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बेवजह, बेकार बातें क्यों सुननी?

बे-सबब बातें क्यों बढ़ानी?

ऐसा क्यों कि बातें कुछ हो, बयाँ कुछ अौर हो?

अच्छी बातों, सच्ची बातों की कमी है क्या?

मुख़्तसर सी बात…छोटी सी बात

बस इतनी है –

बतकही नहीं, चाहिए मीठी गुफ़्तगू ।

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लॉगोरिया / लॉगोरिया / बोलचाल की समस्या  है, जैसे  ज्यादा बोलना, बातें दोहराना । लॉगोरिया को कभी-कभी मानसिक बीमारी के रुप में भी देखा जाता है। यह मानसिक बीमारी, किसी दवा से या मस्तिष्क की चोट के कारण भी हो सकती है।

तुम हो ना ?

जब कभी जीवन समर से थकान होने लगती है।

तब ख्वाहिश होती है,

आँखे बंद कर  आवाज़ दे कर पूछूँ –

मेरे रथ के सारथी कृष्ण तुम साथ हो ना?

अौर आवाज़ आती है –

सच्चे दिल के भरोसे मैं नही तोड़ता

ख़्वाहिश करो ना करो। 

मैं यहीं हूँ।

डरो नहीं, अकेला नहीं छोड़ूँगा!

स्टिग्मा / कलंक ?- Banished for Bleeding!

BBC NEWS- पश्चिमी भारतीय राज्यों में “पीरियड हट्स” जहां हजारों आदिवासी महिलाओं और लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान निर्वासित किया जाता है।

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पता नहीं कब हम बदलेंगे?

सदियाँ गुजर गईं।

ना जाने कितने नए दौर आए।

ईश्वर प्रदात महिलाओं की सबसे बड़ी रचनात्मकता हीं

उनका स्टिग्मा है।

कब बदलेंगे हम?

 

कसौटी

ज़िंदगी और लोग बार बार  परख रहें हैं?

गम ना करो!

सिर्फ़ सोना हीं बार बार

कसौटी पर परखा जाता है।

 

परख

धोखा खाया अपनों और बेहद अपनों से!

लेकिन तब हीं उन परायों की परख हुई ,

जो वास्तव में अपने थे।

शुभ बुद्ध पूर्णिमा Happy Buddh Purnima!

“If you light a lamp for somebody, it will also brighten your path.”

बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार बैसाख पूर्णिमा को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महात्मा बुद्ध का जन्म इस दिन हुआ था। जहां हिंदू धर्म के लोग इसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं, वहीं बौद्ध धर्म के लोग इस दिन बौद्ध जयंती मनाते हैं।

Buddha’s Birthday is celebrated on Buddhu Purnima, it is celebrated on the full moon day of the Vaisakha month According to Buddhist tradition and modern academic consensus, Gautama Buddha was born c. 563–483 BCE in Lumbini (what is now Nepal) and raised in the Shakya capital of Kapilavastu.

कोरोना से संघर्षरत हिंदुस्तान

Don’t shoot them with your camera !

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यह कोरोना से थका-हारा, संघर्षरत हिंदुस्तान है।

मैदाने-जंग या फ़ोटोग्राफ़ी कॉम्पटिशन  नहीं!

गिद्ध और नन्ही  बच्ची की तस्वीर से

पुलित्ज़र पुरस्कार जीतने वाला

रॉबर्ट हेडली भी अपने अपराध बोध से जीत नहीं पाया।

सोंचो वास्तव में गिद्ध कौन है?

 

यहाँ सब ने किसी ना किसी को खोया है।

मदद करो!

पेश आओ  सहानुभूति और हमदर्दी से।

 

मैं क्यों आई धरा पर? #गंगाजयंती/गंगासप्तमी 18 मई

गंगा सप्तमी 18 मई को है। वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थीं। इसलिए इस दिन को गंगा जयंती या गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।

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हिमालय से लेकर सुन्दरवन तक की यात्रा करती,

पुण्य, सरल, सलिला, मोक्षदायिनी गंगा,

 हमेशा की तरह पहाड़ों से नीचे पहुँची मैदानों का स्पर्श कर हरिद्वार !

कुम्भ की डुबकी में उसे मिला छुअन कोरोना का।

आगे मिले अनगिनत कोरोना शव।

वह तो हमेशा की तरह बहती रही

कोरोना वायरस 

जल पहुँचाती घाट घाट!

जो दिया उसे, वही रही है बाँट!

किनारे बसे हर घर, औद्योगिक नगर, हर खेत और पशु को।

 

शुद्ध, प्राणवायु से भरी गंगा भी हार गई है मानवों से।

सैंकड़ों शवों को साथ ले कर जाती गंगा।

हम भूल रहें हैं, वह अपने पास कुछ भी  रखती नहीं।

अनवरत बहती है और पहुँचाती रही है जल।

अब वही पहुँचाएगी जो इंसानों ने उसे दिया।

कहते हैं गंगा मां  के पूजन  से  भाग्य खुल जाते हैं।

पर उसके भाग्य का क्या? 

  ख़्याल उसे आता होगा मगर।

स्वर्ग छोड़ मैं क्यों आई धरा पर ?