रेशम सी नाज़ुक

हर रिश्ते के दर्मियान होती है एक डोर।
रेशम सी नाज़ुक विश्वास और भरोसे से बंधी।
राज़, रहस्य, बेवफ़ाई और झूठ आयें बीच में,
तो टूट कर बिखर जाती है।
ग़र बनाने हो या निभाने हों रिश्ते,
एक दूसरे को सब बताओ, सच बताओ।
ग़र सच सहने का ताब ना हो तो मुरझाने दो इन्हें।
रूह की आईनों में देखो, तुम्हें रिश्तों में क्या चाहिए।
वही दो दूसरों को।
वरना ज़िंदगी क़ैद बन जाएगी।

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